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________________ सफलता के बहुमूल्य सूत्र ७७ आत्मविश्वासी बनना जीवन को सफल बनाने का दूसरा सूत्र है आत्म-विश्वास रखना। उसी व्यक्ति को जीवन में सफलता प्राप्त होती है, जो अपने आप पर पूर्ण विश्वास रखता है । सफलता आत्म-विश्वास की ही देन है। जो अपने पर विश्वास नहीं रखता वह केवल आध्यात्मिक क्षेत्र में ही नहीं, वरन सामाजिक, राजनीतिक एवं व्यवहारिक आदि किसी भी क्षेत्र में सफलीभूत नहीं हो सकता । ___आत्मविश्वास संसार की अन्य समस्त पूजियों से श्रेष्ठ है । क्योंकि अन्य सभी साधन एवं शरीर में शक्ति होते हुए भी अगर व्यक्ति में आत्मविश्वास नहीं है तो वह किसी भी श्रेष्ठ कार्य को सम्पन्न नहीं कर सकता। उदाहरणस्वरूप एक स्वस्थ व शक्तिशाली व्यक्ति सेना में भर्ती हो जाता है। उसे ढाल-तलवार तथा अन्य सभी आवश्यक हथियार दे दिये जाते हैं किन्तु समस्त हथियारों से लैस होकर भी अगर उसमें आत्मविश्वास नहीं है तो क्या वह अपने विरोधियों से लड़कर विजयश्री का वरण कर सकता है ? नहीं, आत्मविश्वास के अभाव में वह अपने साधनों का सही उपयोग भी नहीं कर सकता और पराजय ही उसके पल्ले में पड़ती है। किन्तु इसके विपरीत जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है वह उपयुक्त साधनों के अभाव में ही अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर लेते हैं। ___ महाराणा प्रताप के पास उनका किला, उनका चित्तौड़, उनकी सेना और उनके सहायक, कुछ भी नहीं रहे थे। किन्तु साथ था केवल अपने आप पर दृढ़ विश्वास । उसके बल पर ही उन्होंने अपने समस्त अभावों और संकटों पर विजय प्राप्त की। संसार के अन्य महापुरुषों की जीवनियाँ भी जब हम उठाकर देखते हैं तो स्पष्ट मालूम हो जाता है कि वे जीवनपर्यन्त अपने आप पर दृढ़ विश्वास रखने के कारण ही अपने महत उद्देश्यों की पूर्ति कर सके और महानता को प्राप्त हुए। जिसके अन्दर दृढ़ आत्मविश्वास होता है वह व्यक्ति प्रत्येक परिस्थिति में निर्भय रहता है तथा अपने गन्तव्य की ओर बहादुरी से बढ़ता चला जाता है । उसके हृदय-कोष में असम्भव शब्द का कहीं स्थान नहीं होता । ऐसे व्यक्तियों के लिये एक कवि ने कहा है गिराए जाएं वो गिरि से या गिरि ही आ गिरे उन पर । भयानक मौत भी आए तो भय खाया नहीं करते ।। भरोसा है जिन्हें अपने सिदक पर और सत्गुरु पर । तमन्नाओं में दामन मन का, उलझाया नहीं करते । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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