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जन्मदिन कैसे मनाया जाय ?
कर्मों का बन्धन कर लिया, उनके कारण अगले जन्मों तक के लिये ऋणी भी और हो गया जिसे चुकाने में न जाने कितने जन्म-मरण करने पड़ेंगे।
इसलिये प्रत्येक प्राणी को भलीभांति समझ लेना चाहिये कि विषयासक्ति समस्त अनर्थों का मूल है । हाथी एवं मृग आदि तो एक-एक इन्द्रिय के प्रति आसक्त होने के कारण ही जान से हाथ धो बैठते हैं, फिर जो मनुष्य पाँचों इन्द्रियों के विषयों में आसक्त रहेंगे उनकी क्या दुर्दशा होगी इसकी कल्पना करना ही भयंकर है। विषयों में ऐसी विचित्रता और प्रबल आकर्षण है कि ज्यों-ज्यों इनका सेवन किया जाता है, त्यों-त्यों भोग की लालसा घटने के बजाय बढ़ती ही जाती है। इनके सेवन से किसी भी प्राणी को कभी तृप्ति नहीं हुई है और न ही भविष्य में हो सकती है।
तृप्ति केवल उसी को होती है जो उनका परित्याग करके इनसे विरक्त हो जाता है । श्री भर्तृहरि भी कहते हैं
भोगो भंगुरवृत्तयो बहुविधास्तैरेव चाय भव -1 स्तत्कस्यैव कृते परिभ्रमन रे लोकाः कृतं चेष्टितः । आशापाशशतोपशान्ति विशदं चेतः समाधीयतां ।
कामोच्छित्तिवशेस्वधामनि यदि श्रद्ध यमस्मद्वचः ॥ कहा गया है-ये नाना प्रकार के विषय-भोग नाशवान और संसार-बंधन के कारण हैं । इस बात को जानकर भी, मनुष्यो ! उनके चक्कर में क्यों पड़ते हो ? इस निरर्थक चेष्टा से क्या लाभ होगा ? अगर आपको हमारी बात का विश्वास हो तो आप अनेक प्रकार के आशा जाल के टूटने से शुद्ध हुए चित्त को सदा काम-नाशक एवं स्वयंप्रकाशक शिवजी के चरणों में लगाओ अथवा अपनी इच्छाओं का समूल नाश करने के लिये, अपनी ही आत्मा के ध्यान में मग्न हो जाओ।
तो बंधुओ, अंत में मैं केवल आप से यही कहना चाहता हूँ कि आप मानव जीवन की दुर्लभता पर विचार करें तथा इसे सार्थक बनाने के लिये गंभीर चिंतन करते हुए आत्मा की शुद्धि के लिये जुट जायें । मैं यह नहीं कहता कि आप आज ही गृहस्थ जीवन को त्यागकर साधु बन जायँ, नहीं, अपने कर्तव्यों का पालन मनुष्य को करना चाहिये किन्तु उसे यह भी नहीं भूलना चाहिये कि इस जीवन के बाद भी अगला जीवन होता है और उसकी सफलता के लिये हमें इसी जीवन में प्रयत्न भी करना है । अतः सांसारिक कर्तव्यों को करते हुए भी सांसारिक जंजालों में आप लिप्त न रहें तथा जल में कमल के समान इस संसार में रहते हुए भी अपने उत्तम
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