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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग क्या-क्या प्रयत्न किये थे और किस प्रकार अपनी आत्मा को राग-द्वेष से रहित किया था ?
जब आप एकान्त और शांत वातावरण में बैठकर चिंतन करेंगे तो अवश्य हो आपका मन श्रेष्ठ कार्यों के महत्त्व को समझेगा तथा त्याग, नियम एवं प्रत्याख्यान आदि की महिमा का अनुभव करता हुआ उनकी ओर आकृष्ट होगा तथा उन्हें क्रियात्मक रूप में लाने का विचार और विचार के पश्चात् संकल्प भी करेगा।
अन्यथा हम प्रतिदिन बोलते हैं और आप प्रतिदिन सुन लेते हैं । समय-समय पर जयंतियों या अन्म-दिन भी मना लिया करते हैं पर उससे लाभ क्या हासिल करते हैं ? हमारा समय तो व्यर्थ नहीं जाता क्योंकि हमारे लिये तो स्वाध्याय और धर्मकथा भी तप है। किन्तु आपका समय निरर्थक चला जाएगा। अतः सुनी हुई सौ बातों में से आप अगर एक बात भी अपना लें तो आपका जीवन तो उन्नत बनेगा ही, हमें भी सन्तोष का अनुभव होगा। अगर इतने श्रोताओं में से दो-चार या एक भी हमारे कहे हुए शास्त्र-वचन पर श्रद्धा करता है, विश्वास करता है और उसे अमल में लाने का संकल्प करता है तो वह भी हमारे लिये प्रसन्नता की बात है।
आपने सुना होगा कि अनाथी मुनि ने राजा श्रेणिक को सम्यक्त्व का स्वरूप समझाकर उन्हें आत्मोत्थान का सच्चा मार्ग बताया था। इसी प्रकार अगर आपमें से एक भी व्यक्ति जीवन के महत्व को समझ लेता है तथा आत्म-कल्याण के प्रयत्न में जुट जाता है तो हमारे लिये हर्ष का विषय है।
यह दुर्लभ जीवन बार-बार नहीं मिलता । एक बार अगर इसे व्यर्थ कर दिया जाय तो दूसरी बार कब इसकी प्राप्ति होगी, यह कहा नहीं जा सकता। इस संबंध में हमारे यहाँ दस दृष्टान्त प्रसिद्ध हैं। पर उनका उल्लेख करने से विस्तार अधिक हो जाएगा । कभी प्रसंगवश ही उन्हें बताया जा सकेगा। किन्तु जिन भव्य प्राणियों को मनुष्य जीवन की दुर्लभता को समझने की जिज्ञासा हो उन्हें अवश्य पढ़ना चाहिये।
अभी तो मुझे यही कहना है कि इसी मानव शरीर का निमित्त पाकर अनेक अवतारी पुरुषों ने संसार से मुक्ति प्राप्त की है और मुनिजन छठे आदि उच्च गुणस्थानों को प्राप्त करते हैं । ऐसे महान् उपयोगी जीवन को प्राप्त करके भी यदि विशेष आत्म-कल्याण की साधना नहीं हो सकी तो समझना चाहिये कि उसकी प्राप्ति निरर्थक हो गई । इतना ही नहीं, अनन्त पुण्य-रूप गाँठ की पूजी, जिसके बल पर यह जीवन मिला था वह भी गई। साथ ही विषय भोगों को भोगकर जो असंख्य
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