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जन्मदिन कैसे मनाया जाय ?
--आप प्रत्येक व्यक्ति का चरित्र बता सकते हैं, यदि आप देखें कि वह अपनी प्रशंसा से कैसा प्रभावित होता है।
आशा है आप लेखक के कथन का आशय समझ गए होंगे। वह यही कहना चाहता है कि सच्चरित्र एवं निस्पृही व्यक्ति अपनी प्रशंसा को सुनकर कभी प्रसन्न नहीं होता और उसके हृदय में अहंकार का भाव भी पैदा नहीं होता। किन्तु जो व्यक्ति अपनी प्रशंसा को सुनकर खुशी से फूले नहीं समाते तथा गर्व से भर जाते हैं, उनके लिये समझना चाहिये कि वह धन एवं कीर्ति के लोलुप हैं तथा वे जो कुछ भी करते हैं अपने आत्म-संतोष अथवा आत्म-कल्याण की दृष्टि से नहीं अपितु लोगों में प्रशंसनीय बनने के लिये तथा ख्यातिप्राप्ति के लिये अच्छे कार्य करने का दिखावा करते हैं । ऐसे व्यक्तियों का चरित्र उनकी आत्मा को श्रेष्ठ एवं संसारमुक्त कभी नहीं बना सकता।
छत्रपति शिवाजी ने अपना सम्पूर्ण राज्य अपने गुरु स्वामी श्री रामदास जी महाराज को प्रदान कर दिया था।
. स्वामी जी ने कहा – 'मैं तो साधु हूं। राजपाट लेकर क्या करूंगा ? मेरे लिये तो यह धन-वैभव सोना-चाँदी, मकान सब मिट्टी के समान हैं ।"
किन्तु शिवाजी ने उत्तर दिया- "मैं तो यह सब आपको अर्पण कर चुका । और भेंट की हुई चीज़ को पुनः ले नहीं सकता।"
इस पर स्वामी रामदास जी ने कुछ सोच-विचार कर कहा-"ठीक है, मुझे सब कुछ सौंप चुके हो तो अब मेरा समझकर ही इस राज का कार्यभार एक कर्मचारी के नाते सम्हालो । जब तुम इसे अपना नहीं समझोगे तो इसके लिये कभी तुम्हारे मन में अभिमान नहीं आएगा कि मैं राजा हूं और इसके प्रति तुम्हारी मोह-ममता अथवा आसक्ति भी नहीं रहेगी। इससे तुम प्रजापालक बनोगे तथा अपने आपको प्रजा का सेवक समझोगे। और यही सब बातें तुम्हारी आत्मा को निरंतर श्रेष्ठता की ओर ले जाएंगी।
बंधुओ, महापुरुष इसी प्रकार प्राणियों को बोध देते हैं। तथा उन्हें सन्मार्ग पर चलाते हैं । आवश्यकता है सदुपदेशों को ग्रहण करने की तथा महान् व्यक्तियों के दिये हुए बोध को जीवन में उतारने की।
____ मैं भी आपसे यही आशा रखता हूँ। मैं अपनी प्रशंसा इसी में समझूगा कि आप सुने हुए और समझे हुए जिन वचनों को आत्म-सात् करें तथा उन्हें आचरण में उतारें। इस संसार में रहते हुए व्यक्ति को धन, शक्ति, बुद्धि अथवा
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