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जन्म दिन कैसे मनाया जाय ?
धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनो !
आज श्रावण शुक्ला प्रतिपदा के दिन मेरे ७४वें वर्ष के जन्मदिन के उपलक्ष में आप लोगों ने जो-जो कुछ कहा, वह आपकी श्रद्धा एवं स्नेह का प्रतीक है । किन्तु आपके वचन ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र की प्रशंसा के रूप में है । ऐसे वचनों को सुनकर अगर कोई व्यक्ति उन्हें अपनी प्रशंसा के रूप में समझे तो यह उसकी महान् भूल है । प्रशंसा किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन की नहीं होती, वह केवल गुणों की होती है ।
आपने श्री उत्तराध्ययन सूत्र का नवां अध्याय पढ़ा होगा । उसमें मिथिला नगरी के राजा श्री नमि राजऋषि का वर्णन है । नमि राजऋषि, राजा होने पर भी संसार से विरक्त हो जाते हैं और दीक्षित होकर संयम का पालन करने की भावना प्रकट करते हैं ।
यह जानकर देवताओं के राजा इन्द्र स्वयं उनकी परीक्षा लेने के लिये आते हैं कि इस कठिन एवं त्यागमय, आध्यात्मिक मार्ग पर राजर्षि चल सकेंगे या नहीं । यद्यपि आत्मा में वैराग्य की भावना का उदय होने पर फिर संसार की समस्त वस्तुएं एवं भोग-विलास के साधन व्यक्ति को तुच्छ एवं असार नजर आते हैं । वे भलीभांति समझ लेते हैं.
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जम्मं मरणेण समं, संपज्जइ जुव्वणं जरासहियं । लच्छी विणाससहिया, इय सव्वं भंगुरं मुणह ॥
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- कार्तिकेयानुप्रेक्षा ५
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