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________________ चीखू करजे मन नो चीर रे ! अब खलीफा ने अपने शाहजादे को संबोधित करते हुए कहा-"पुत्र ! उस व्यक्ति के लिये सबसे बड़ी सजा तो मेरी दृष्टि में यह है कि तुम उसे क्षमा कर दो। क्योंकि जो व्यक्ति औरों के सौ अपराध माफ करता है, खुदा उसके हजार अपराध क्षमा कर देता है । हाँ, अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते हो और बदला ही लेना चाहते हो तो जाकर उसे भी वही गाली दे आओ, किन्तु याद रखो कि फिर उसमें और तुममें कोई फर्क नहीं रहेगा । और अगर तुम उसकी अपेक्षा अधिक उत्तेजित हो गए तो उससे बड़े अपराधी साबित होओगे।'' शाहजादा पिता की सीख का मर्म समझ गया और उसने सच्चे हृदय से अपने अपराधी को क्षमा कर दिया। वास्तव में, क्षमा जीवन की ऐसी उत्तम भावना है जिसमें शांति, संयम, करुणा, दया, स्नेह, सहानुभूति आदि सभी श्रेष्ठ भावनाओं का समावेश हो जाता है : इसीलिये कवि ने क्षमा रूपी अडिग शिला पर मन रूपी वस्त्र को धोकर शुद्ध करने की सीख जीव को दी है। आगे कहा है छांटा उठे नहीं पाप अठारना रे, सुव्रत थी राखजे संभाल रे । साबू आलोयणा लगावणो रे, आवे नहीं माया नो सेवाल रे । "धोबीड़ा.... कहते हैं- 'हे आत्मन् ! तू क्षमा रूपी शिला पर अपने मन के वस्त्र को धोना, पर ऐसी सावधानी से धोना कि अठारहों पापों में से किसी भी पाप के छींटे औरों पर न लगने पाएँ । अगर अपने मन को शुद्ध करते हुए यह अभिमान आ गया कि 'मैं ऐसा हं ।' और दूसरों के लिये कह दिया कि 'वह ऐसा है ।' तो यह अपनी प्रशंसा तथा औरों की निंदा होगी तथा इनके कारण तुझे दोषी बनना पड़ता। परनिंदा दूसरों पर कीचड़ या मैल उछालने जैसी ही होती है। अतः हे जीव ! तू इससे बचना और किसी पर भी पाप रूपी मैल के छींटे मत गिरने देना। एक संस्कृत के श्लोक में कहा गया है स्व-श्लाघा परनिन्दा च कर्ता लोकः पदे पदे । परश्लाघा स्व निदा च कर्ता कोऽपि न विद्यते ।। —अपनी प्रशंसा और दूसरों की निंदा करने वाले व्यक्ति तो आपको कदम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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