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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग
कवि ने आत्मा को धोबी की उपमा दी है और मन-रूपी धोती को स्वच्छ एवं शुद्ध करने का आदेश दिया है । ध्यान देने की बात है कि कवि की निगाह से कोई भी बात नहीं बची है। उदाहरणस्वरूप-धोबी जब वस्त्र धोता है तो उन्हें किसी शिला पर पछाड़ कर उनका मैल हटाता है । अतः इन्होंने भी मन रूपी वस्त्र धोने के लिये शम, दम और क्षमा रूपी शिला बताई है।
शम अर्थात् शांति दम यानी इन्द्रिय-संयम और क्षमा से आप परिचित ही हैं । क्षमा मानव-जीवन का एक ऐसा अमूल्य गुण है, जिसकी तुलना में अन्य कोई भी गुण नहीं रखा जा सकता । कहा भी है
"क्षमा वशीकृतेर्लोके, क्षमया कि न साध्यते ।" क्षमा संसार में वशीकरण मंत्र है, क्षमा से क्या सिद्ध नहीं होता ? अर्थात् सभी कुछ प्राप्त होता है । एक छोटासा उदाहरण हैसबसे बड़ी सजा
बगदाद के खलीफा हारू रशीद बड़े धर्मपरायण, न्यायप्रिय एवं प्रजावत्सल पुरुष थे । एक बार उनका शाहजादा क्रोध से आग-बबूला होता हुआ उनके पास आया ।
__ खलीफा ने उसके क्रोध का कारण पूछा तो उसने उत्तर दिया-"आपके अमुक अफसर ने मुझे बड़ी गंदी और असह्य गाली दी है। इसका प्रतिकार होना चाहिये।"
खलीफा ने शांति से पुत्र की बात सुनी और अपने सामने बैठे हुए वजीर, सेनापति आदि उच्चपदस्थ व्यक्तियों से पूछा- ''आप लोग मुझे सलाह दीजिये कि उस अफसर को क्या सजा दी जानी चाहिये ?"
खलीफा की बात सुनकर उपस्थित व्यक्तियों में से किसी ने कहा- उसे फांसी दे देनी चाहिये । किसी ने कहा-उस नीच की जीभ खिंचवा लेनी चाहिये । और किसी ने कहा - उसका मुंह काला करके तथा धन-माल जब्त करके देश-निकाला दे देना चाहिये।
___ खलीफा हारू रशीद ने सबकी बात सुनी पर उनमें से कोई भी सजा उस अभियुक्त के लिये उन्हें उचित नहीं लगी। यह जानकर सब हैरान रह गये कि आखिर इन सजाओं की अपेक्षा भी और कौन-सी कड़ी सजा हो सकती है, जो बादशाह उसे देना चाहते हैं ? वे बादशाह के मुंह से वह सजा सुनने के लिये उत्सुक होकर चुपचाप बैठे रहे।
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