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चोखू करजे मन नो चीर रे !
५१ ऐसा होता है कुसंगति या मूों की संगति का परिणाम । अब एक सुसंगति का उदाहरण देखिये।
सत्संगति का फल कहा जाता है कि एक बार नारद जी विष्णु के पास गए और बोले-.-"देव ! आज मैं आपसे यह पूछने आया हूँ कि सत्संगति से क्या लाभ होता है ?'
विष्णु जी ने उत्तर दिया-"नारदजी, आपकी इस बात का मैं तो उत्तर नहीं दे सकता । आप नरक में जाकर अमुक नारकीय जीव से यह बात पूछ लें।"
नारद सोचने लगे- "मुझे नरक में जाना पड़ेगा, पर यह जानना तो जरूर है।" अत: वे नरक में गये और विष्णु के बताए हुए जीव से उन्होंने यह बात पूछी। पर वे चकित रह गए यह देख कर कि उनकी बात समाप्त भी नहीं हो पाई थी कि वह जीव समाप्त हो गया। नारद जी चकित हुए और सोचने लगे .. "विष्णु भगवान ने क्या मुझसे उपहास किया था ? अब कभी उनके पास जाने का नाम नहीं लूगा।"
__पर उन्हें कहाँ चैन पड़ सकती थी। थोड़े दिन बाद फिर पहुँच गए विष्णु के पास और कहने लगे-"उस बार तो आपने मुझे नरक में भेज कर खूब बनाया पर इस बार तो अब बताना ही पड़ेगा कि सत्संगति का क्या फल होता है ?"
विष्णु हंस पड़े और बोले - "अच्छा, विंध्याचल पर्वत पर एक तोता है उससे यह बात पूछ लेना।" नारद जी भागे हुए विंध्याचल पर्वत पर भी पहुंचे और तोते से यह बात पूछने लगे-पर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि उनके प्रश्न पूछतेपूछते तोता भी मर गया।
नारद झल्लाये हुए वहाँ से लौटे और फिर कभी विष्णु के पास न जाने का निश्चय किया। पर थोड़े दिन बाद जब फिर नहीं रहा गया तो पुनः उनके पास पहुंच गए। इस बार भी विष्णु ने उन्हें एक गाय के बछड़े से यह बात पूछने के लिए भेज दिया । और बछड़े का भी वही हाल हुआ जो नारकीय जीव और तोते का हुआ था।
नारद जी बड़े हताश हुएं और उन्होंने प्रतिज्ञा की कि अब तो विष्णु के पास फटकूगा भी नहीं। पर कुछ वर्ष बीतने पर फिर वे अपनी प्रतिज्ञा भूलकर विष्णु के पास आ गए और बोले-"भगवन् ! आपने मुझे बहुत भटकाया है । पर इस बार जाने बिना नहीं छोड़ गा कि सत्संगति से क्या होता है ?"
विष्णु तैयार ही थे, बोले- "इस बार आपको अवश्य ही बात का पता मिल
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