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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग नहीं रहती । और माँगने से अथवा कामना करने से कि मेरे अमुक त्याग या तप का अमुक फल मिले तो वह सीमित हो जाता है।
___ तो पद्य में बताया है कि इस जिनशासन रूपी निर्मल सरोवर में मुनि रूपी हंस क्रीड़ा कर रहे हैं । कवि का आशय यही है कि अगर व्यक्ति अपनी आत्मा का उत्थान करना चाहता है तो उसे संतों की शरण में जाना चाहिये । संगति का जीवन पर बड़ा भारी असर पड़ता है । कुसंगति करने से मन को सदा हानि उठानी पड़ती है और सुसंगति से लाभ होता है । इसलिये मूों की संगति न करके मनुष्य को सदा सज्जनों की संगति करना चाहिये । सोनी जी से पूछो!
एक बार एक सुनार काफी रकम लिये हुए किसी एक गाँव से दूसरे गाँव को जा रहा था। मार्ग में उसे एक मुर्ख जाट मिल गया । सुनार ने सोचा चलो इसका साथ अच्छा हो गया । रास्ता सुगमता से कटेगा।
दोनों साथ-साथ कुछ दूर गए थे कि सामने से दो व्यक्ति ऊंट पर बैठे आते दिखाई पड़े। उनकी मुखाकृति और खूखारता देखकर सुनार को लगा कि ये कहीं डाकू न हों। यह सन्देह होते ही वह अपने साथी जाट से बोला- "देख भाई ! तेरे पास तो कुछ भी धन नहीं है अतः तू चुपचाप चला चल, किन्तु मेरे पास रकम है अतः मैं सड़क के उस ओर छिप जाता हूं। पर याद रखना, मेरा पता उन्हें मत देना।
जाट ने सोनी जी की इस बात को स्वीकार कर लिया और सड़क पर चलता रहा। ऊंटवाले व्यक्ति पास आ गए और जैसा कि सुनार ने सोचा था, वे डाक ही थे । अतः उनमें से एक ने अपनी लाठी उठाकर जाट के सिर पर मारनी चाही।
यह देखकर जाट चिल्लाया और बोला.-"अरे ! मारना मत मेरे सिर पर ! क्योंकि सिर पर साफा बँधा है और उसमें एक रुपया है, कहीं वह टूट न जाय ।"
लाठी उठाने वाले व्यक्ति ने घुड़ककर कहा-"क्या बकता है ?"
जाट बेचारा भोला था । डाकू की घुड़की सुनकर उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई और वह चट से बोल उठा-"बक नहीं रहा हूँ। सच कह रहा हूँ। मेरे सिर पर एक रुपया है, पर वह खरा है या खोटा, यह मैं नहीं जानता। सोनी जी से पूछ लो, वे इधर छिपे बैठे हैं।"
जाट की यह बात सुनते ही दूसरा व्यक्ति जाकर सोनी जी को पकड़ लाया और उनकी पूरी रकम छीन ली।
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