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________________ आनन्द प्रवचन | पाँचवा भार्ग "अरे धोबी ! तू अपने मन के वस्त्र को, मन की धोती को स्वच्छ धो डाल । उसमें तनिक भी मैल मत रहने दे । क्योंकि वह मैल सारी दुनिया को मैला बना रहा है । मन के मैले होने का कारण कवि ने बताया है - मिथ्यात्व के कारण मन मैला हुआ है और अठारह दोषों की इससे दुर्गन्ध निकल रही है । कषायों के काले धब्बे भी इस पर जगह-जगह लगे हैं अतः इसकी सम्पूर्ण निर्मलता नष्ट हो गई है । परिणाम यह हुआ कि जिन वचनों के बोध-रूपी साबुन का इस पर कोई असर नहीं होता है अतः तू इस मन रूपी धोती को धोकर पूर्ण स्वच्छ बना ।" आगे इसके लिये उपाय भी बताया है ४८ जिन शासन सरोवर छे शोभतुं रे, समकितनी समो तेनी पाल रे । दान, शील, तप, भावना रे, चार ए द्वार छे विशाल रे..... 1 बड़ा तू धजे मननूं धोतियो रे ॥ मन को निर्मल बनाने का कितना सुन्दर तरीका बताया गया है ? कहते हैंअपने मैले मन को तू जिन- शासन रूपी सरोवर पर ले चल । यह सरोवर जिन-वचन रूपी निर्मल जल से भरा हुआ अत्यन्त शोभायमान हो रहा है । इसकी पाल श्रद्धा 'या सम्यक्त्व से बाँधी गई है । विचार उठता है कि इस सरोवर की पहचान कैसे की जाय और इस तक कैसे पहुंचा जाय ? उसका भी उपाय कवि ने बताया है कि दान, शील, तप और भावना, ये चार ऐसे विशाल द्वार हैं, जिनमें प्रवेश करके तू इस सरोवर पर पहुंच सकता है । अब देखिये, जिन शासन रूपी सरोवर के विषय में आगे क्या कहा गया है Jain Education International तेमा झीले छे मुनिवर हंसला रे, पीये छे निर्मल जप-तप नीरं रे । शम, दम, क्षमानी शिला ऊपरे रे, चोखू तू करजे मननूं चीर रे...धोबीड़ा। कितने सुन्दर भाव हैं ? कहा है— इस जिन शासन रूपी सरोवर में मुनिराज रूपी हंस कल्लोल कर रहे हैं, रमण कर रहे हैं । हंसों का कार्य क्या होता है ? मोती उठा लेना और कंकर छोड़ देना । इसी प्रकार मुनि रूपी हंस भी यहाँ पर सार-सार ग्रहण करते हैं और असार तत्व को छोड़ रहे हैं । अपने चिंतन और मनन से ये सही For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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