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धोबीड़ा, तू धोजे मन धोतियो रे ! कौनसा रंग शुभ होता है और कौनसा अशुभ । रंग पांच होते हैं। काला, नीला, लाल, सफेद और पीला । इनमें से काले रंग को अशुभ और सफेद को शुभ माना गया है।
तो कषायरूपी रंगों से मन रूपी कपड़ा मैला हो गया है तथा पाप रूपी दोषों की इसमें से दुर्गंध आ रही है। मन के मैलेपन और दुर्गधि को दुनिया के व्यक्ति भी अच्छा नहीं मानते तथा पारमार्थिक उद्देश्य भी कोई सिद्ध नहीं होता। इसीलिये मेरा बार-बार आग्रह है कि हे आत्मन ! तू अपने मन रूपी वस्त्र पर चढ़े हुए कषायों के काले रंग को धो ले तथा इससे पापों की उठती हुई दुर्गन्ध को मिटा डाल । आगे कहा गया है
राग ने द्वषे ए रंगेल छ रे, निर्मलता थई छे सघली नाश रे। दाधा के अनेक दुर्बोध नारे,
ए चीवर मां टेवोनी चीकाश रे....."धोबीड़ा......" राग और द्वेष के काले रंग से यह मन ऐसा रंग गया है कि इसकी समस्त निर्मलता नष्ट हो गई है। साथ ही इसमें अज्ञान के अनेक दाग भी लगे हुए हैं। इतना ही नहीं, कुटेवों की बड़ी बुरी आदत के कारण इसमें चिकनापन यानी चीकटपना भी बहुत आ गया है, अत: इसे खूब मेहनत और प्रयत्नपूर्वक धोकर शुद्ध बना। श्री उत्तराध्ययन सूत्र के बत्तीसवें अध्याय में भगवान ने फरमाया है"रागो य दोसो विय कम्म बीयं,
कम्मं च मोहप्पभवं वयन्ति । कम्मं च जाईमरणस्स मूलं,
दुक्खं च जाईमरणं वयंति ।। -राग और द्वष ये दो कर्म के बीज हैं। कर्म मोह से उत्पन्न होता है। कर्म ही जन्म-मरण का मूल है और जन्म-मरण ही वस्तुतः दुःख है।
वस्तुतः किसी चीज के साथ प्रेम करना और किसी से द्वेष रखना, ये दोनों ही कर्मबन्धन करने वाले कर्मबीज हैं। जिस प्रकार शुभ बीज से शुभ अन्न और अशुभ बीज से अशुभ वस्तु उत्पन्न होती है, उसी प्रकार शुभ कर्मों से शुभ फल और अशुभ कर्मों से अशुभ फल की प्राप्ति होती है। राग-द्वेष अशुभ बीज हैं । अतः
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