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________________ आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग धोबीड़ा! तू धोजे मननू धोतियो रे ! रखे राख तो मैल लगा रहे, एणो रे मेले जग मेलो कयो रे ? धोईने कर उज्ज्वल उदार रे ....."धोबीड़ा. ... पद्य में कहा गया है—"हे आत्मन् ! हे धोबी !! तू इस मन रूपी वस्त्र अथवा धोती को धो डाल ।" जिस प्रकार धोबी कपड़ा धोकर उसका मैल छुड़ा देता है, उसी प्रकार आत्मा को भी मन रूपी कपड़े को धोने की प्रेरणा दी है। आगे कहा है - इस मनरूपी कपड़े पर तनिक भी मैल लगा हुआ मत रहने देना । क्योंकि इसी मैल ने सारी दुनिया को मैली बना दिया है। अतः इस मनरूपी वस्त्र को अब उदारतापूर्वक पूर्णतया साफ कर दे, उज्ज्वल कर दे। __ कपड़ा जब साफ हो जाता है अर्थात् उसका मैल धुल जाता है तो वह उज्ज्वल और हल्का हो जाता है । इसी प्रकार जब पाप रूपी मैल आत्मा से छूट जाएगा, उससे अलग हो जाएगा तो आत्मा शुद्ध और हल्की हो जाएगी। कहा भी है अप्पो विय परमप्पो, कम्मविम्मुक्को य होइ फुडं । आत्मा जब कर्म-मल से मुक्त हो जाता है तो वह परमात्मा बन जाता है । इसलिये कवि का कहना है कि 'हे आत्मा रूपी धोबी ! तू मन रूपी इस वस्त्र को धोकर साफ तथा शुद्ध कर दे ।' आगे कहा गया है मिथ्याते करी ने मन मैलू थy रे, पापो ना लाग्या थे दास रे। कालू थ! छे विषय कषाय थी से, दोषो थी उठे छे दुर्वास रे .. धोबीड़ा तू ..." इस पद्य में कहा गया है कि मनरूपी यह वस्त्र मैला क्यों हुआ ? इसलिये कि मिथ्यात्व के कारण इसने सच्चे को झूठा और झूठे को सच्चा मान लिया है। अर्थात् जो सच्चा पदार्थ है उसे झूठा और संसार के झूठे पदार्थों को सच्चा मान लिया है । इसी झूठेपन के कारण यह मन मैला हो चुका है। ___इस मन रूपी कपड़े पर अठारह प्रकार के पापों के दाग लगे हैं । झूठ, क्रोध, कपट, ईर्ष्या, द्वेष, कषाय, गर्व आदि के बड़े चिकने धब्बे इस पर लगे हुए हैं और इसी से यह काला हो चुका है । भगवती सूत्र में रंगों के विषय में बताया गया है कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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