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________________ ४० आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग आकर्षित हो गये । उनके हितचिन्तक कालिदास ने जब यह देखा तो उनके होश उड़ गए। उन्होंने विचार किया-- 'छिद्र ष्वना बहुलीभवन्ति ।' यानी एक सुराख जिस प्रकार हजारों सुराख पैदा कर देता है, उसीप्रकार एक दुर्गुण भी अनेकों दुर्गुणों को जन्म देता है । अतः अगर महाराज को अभी ही सचेत न किया गया तो वे इस एक दुर्गुण के साथ-साथ अन्य अनेकों दुर्गुण भी अपना लेंगे और इस विशाल साम्राज्य को संभालना उनके लिये कठिन हो जाएगा। इसी कारण कालिदास ने हर-हालत में राजा को मद्यपान की ओर से विरक्त करने का निश्चय किया और उसके लिये एक दिन वह भिक्षुक का वेश बनाकर तथा ऐसी गुदड़ी ओढ़कर राज्यसभा में आया, जिसमें अनेक छिद्र थे । जब कालिदास ने राज-दरबार में प्रवेश किया, उस समय राजा भोज अपने मंत्रियों, सामंतों व सेनापतियों से घिरे हुए बैठे थे । भिक्षुक को देखकर वे चकित हुए और उपहास सहित बोले- "वाह ! भिक्षुराज तुम्हारी यह कथड़ी तो बड़ी अजीब है। इतनी जीर्ण और सहस्रों छेदों वाली गुदड़ी ओढ़कर तुम राजसभा में कैसे दर्शन देने आ गए ?' भिक्षक ने हंसकर उत्तर दिया-"महाराज ! यह कथड़ी नहीं है। यह तो मछलियाँ पकड़ने का जाल है । इसे देखकर आप समझे नहीं।" "मछलियाँ पकड़ने का जाल है ? क्या तुम मछलियाँ पकड़ा करते हो ?" राजा ने आश्चर्यपूर्वक पूछा। "हां, मछलियाँ पकड़ता हूं। नहीं पकड़ तो फिर खाऊं क्या ?" "क्या तुम मछलियाँ खाते भी हो ?" राजा ने भिक्ष की बात काटकर बीच में ही पूछ लिया। “जी हां, हुजूर ! मछलियाँ खाता हूँ। क्योंकि मैं शराब पीता हूँ । शराब पीने वाले को मांस भी तो चाहिये।" राजा भोज आश्चर्य से अभिभूत-से हो गये । बोले - "तुम शराब पीते हो, मांस खाते हो, क्या यही भिक्षु का कर्तव्य है।" "पर महाराज ! मैं वेश्याओं के साथ रहता हूँ, वहाँ तो बिना मांस-मदिरा के कुछ आनन्द ही नहीं आता।" "ओह ! भिक्षु होकर भी वेश्यागमन ? मांस एवं मदिरा का प्रयोग ? तुम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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