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________________ बड़ा, तू धो मन धोतियो रे ! ३६ यानी - यह घोड़ा बड़ी तेजी से दौड़ रहा है किन्तु उसे खींचकर पकड़ता हूं । मैं घोड़े के कब्जे में नहीं हूँ अपितु वह मेरे कब्जे में है । गौतमस्वामी सुन्दर प्रश्न का उत्तर भी बड़े सुन्दर ढंग से देते हैं । वे घोड़े के उदाहरण से ही अपने मन के विषय में कह देते हैं कि मेरा मन यद्यपि अपनी चंचलता के कारण इन्द्रियों के विषयों की ओर उन्मुख होता है, किन्तु मैं सम्यक् ज्ञान रूपी लगाम से इसे पुनः अपनी आत्मा की ओर खींच लेता हूं अतः यह अपनी इच्छानुसार इधर-उधर नहीं जा पाता । बंधुओ, केशीस्वामी ने प्रश्न किया और गौतमस्वामी ने उत्तर दिया किन्तु वह प्रश्नोत्तर साधारण जनता की समझ में कैसे आता ? जनता प्रश्न और उत्तर में भी 'घोड़' शब्द से क्या समझती अत: फिर से प्रश्न किया गया आसे य इइ के वुत्ते, केसी गोयममब्बवी । के सिमेवं इणमब्बवी ॥ बुवंतं तु गोयमो गाथा में पूछा गया है - हे गौतम ! जिस घोड़े पर तुम बैठे हो वह कौन-सा है ? उन्मार्ग क्या है ? तुम और हम तो यह समझ गये किन्तु जनता क्या समझेगी ? इस प्रकार पूछे जाने पर गौतमस्वामी ने उत्तर दिया मणो साहसिओ भोमो, दुट्ठस्सो परिधावई । तं सम्मं तु निगिण्हामि, धम्मसिक्खाइ कंथगं ॥ गौतमस्वामी कहते हैं -- हे पूज्य ! आप पूछ रहे हैं कि वह घोड़ा कौन-सा है ? उसका जबाव यह है कि वह घोड़ा मन है । मन रूपी यह दुष्ट अश्व अत्यन्त साहसी, भयंकर एवं चपल है । अपनी चपलता के कारण यह इधर-उधर अर्थात् इन्द्रियों के विषय की ओर दौड़ने लगता है किन्तु मैं इसे धर्म- शिक्षा रूपी लगाम से पुनः खींचकर वश में कर लेता हूँ । वस्तुतः मन बड़ा चंचल है और यह कभी भी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता । अगर इसे शुभ विचारों और शुभ क्रियाओं की ओर न लगाया जाय तो चूंकि यह क्षण भर के लिये भी खाली नहीं रहता अतः अशुभ प्रवृत्तियों की ओर बढ़ जाता है । साथ ही यह इन्द्रियों को किसी एक पाप में प्रवृत्त करके भी चुप नहीं बैठता । उन्हें एक के बाद दूसरा, दूसरे के बाद तीसरा और इसी प्रकार शनैः-शनैः सभी पापों की ओर बढ़ा देता है । Jain Education International एक के पीछे अनेक कहा जाता है कि एक बार राजा भोज कुसंगति के कारण मद्यपान की ओर For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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