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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग
अपनी जबान से फिर सकता हूँ क्या ? मैं तो भगवान के समझाने पर भी अपनी इतनी दूर से मेहनत करके लाई हुई वस्तु को नहीं छोड़ सकता । तुम लोगों को सो करो। मैं तुम्हें मना नहीं करता ? फिर मुझे क्यों तुम लोग परेशान
कर रहे हो ?"
व्यापारी बेचारे क्या करते ? उसकी मूर्खता को कोसते हुए और उसकी विवेक रहित बुद्धि पर तरस खाते हुए आगे बढ़ गये ।
इसीलिये पाँचवीं समिति में अत्यन्त विवेक पूर्वक परिष्ठापना के लिये भगवान ने आदेश दिया है । पूर्ण विवेक रखने पर ही इसका पालन हो सकता है तथा साधक संवर के पथ पर अग्रसर हो सकता है ।
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