________________
विवेको मुक्ति-साधनम् बाद उन्होंने देखा कि अब एक चांदी की खान आई है। व्यापारी बड़े खुश हुए और सबने अविलम्ब तांबा फेंककर चाँदी की गठरियां बाँध लीं। किन्तु वह लोहवाणिया अपनी जिद पर ही अड़ा रहा कि इतनी दूर से लाई हुई वस्तु अब क्यों फेंकू।
व्यापारियों का क्या बिगड़ता था, वे सब और आगे चले । जब काफी मील चल चुके तो उन्होंने आश्चर्य से देखा कि आगे सोने की खान है। जहाँ चारों ओर सोना बिखरा पड़ा है। सभी व्यापारियों की प्रसन्नता का पार ही न रहा । उन्होंने चाँदी को भी छोड़ दिया और सोने को गठरियों में बाँध लिया । वास्तव में ही सोने को छोड़कर चाँदी कौन रखता ? उस लोहवाणिये से भी सबने यहाँ बहुत कहा कि अब तक लोहे का वजन तुमने उठाया तो कोई बात नहीं। पर अब तो सोना बाँध लो, हम सब मालामाल हो जायेंगे । किन्तु वह तो लकीर का फकीर था, जो धुन में आ गई उसे छोड़ा ही नहीं और उस लोहे की गठरी को लिये हुए ही चल पड़ा। साथी बेचारे क्या करते ? वे भी उसकी नासमझी पर दुःख करते हुए उसके पीछे चल दिये।
सभी व्यापारी अब सोने की खान से बहुत दूर आ गये। मीलों चल चुके थे। पर उन्हें नहीं मालूम था कि इस बार उनके भाग्य का सितारा बड़ी बुलंदी पर है । इसलिये ज्योंही उनकी दृष्टि एक ओर गई, देखा कि आगे जगमगाते हुए हीरे ही हीरे बिखरे हुए हैं। सभी की आँखें फटी की फटी रह गई। देखते क्या हैं कि यहाँ तो हीरों की खान है। सब व्यापारियों ने हाथ जोड़कर भगवान को बार-बार प्रणाम किया और अपार प्रसन्नता पूर्वक हीरों की बड़ी-बड़ी पोटलियां बांध लीं।
इस बार उन्होंने लोहवाणिया को बहुत जोर देकर कहा-"मूर्खराज ! मूर्खता की भी हद होती है । इस समय तो तुम्हारे सामने ये हीरे ही हीरे पड़े हैं। कम्बख्त लोहे को फंककर अब तो हीरे समेट लो। लोहा ले जाकर क्या करोगे ? एक हीरे के मूल्य में ही इससे अनेक गुना लोहा आ जाएगा। जल्दी फेंको इसे और हीरे समेटो। हम तुम्हारे हितचिंतक हैं, सब साथ आए हैं, अतः सभी का भाग्य खुल जाए यह चाहते हैं।
किन्तु लोहवाणिया भी बनिया था। कुत्ते की पूंछ पकड़ी सो पकड़ी ही । वह टस से मस नहीं हुआ और बोला-"अब मंजिल के समीप पहुंचकर भी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org