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________________ विवेको मुक्ति-साधनम् उनके कार्यों को विवेक की तुला पर तौलकर सच्ची परख कर लेते आगे कहा है बुद्धि थोड़ी ने बहु भरडे, विण समझ्यां मोटाना वेण भरडे । समझ्या बिना केम कहेशे सांचू ? एक ववा बिना सघलू कांचू । जिसके पास बुद्धि कम होती है वह बकवास अधिक करता है तथा बिना समझे ही बड़ों की बातों में मीन-मेख निकालता है और उन्हें अनुपयुक्त साबित करने की कोशिश करता है । उसकी जिह्वा सदा कैंची के समान चलती है और उसे प्रिय-अप्रिय, उचित और अनुचित वचन कहने का भान नहीं रहता । परिणाम यह होता कि कोई भी व्यक्ति उसकी बातों पर विश्वास नहीं करता और उन्हें महत्व नहीं देता। स्पष्ट है कि व्यक्ति को कम और विवेक पूर्ण बोलना चाहिये । उसे समझ लेना चाहिये कि अधिक बोलना ही बुद्धिमानी का लक्षण नहीं है । उलटे बुद्धिमानी का लक्षण तो कम और विवेकपूर्वक बोलना होता है । एक पाश्चात्य विद्वान ने कहा है Jain Education International -- “Silence is one art of conversation" अर्थात् - मौन बातचीत की महान कला है । कबीर जी ने अपना विचार व्यक्त किया है - ३३ । कवि ने बोली एक अमोल है, जो कोई बोले जानि । हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आनि ॥ कितनी सुन्दर बात है ! बोली वास्तव में एक दुर्लभ वस्तु है पर केवल उसके लिए, जो बोलना जानता हो । आप विचार करेंगे, बोलना तो सभी जानते हैं यह कौनसी बात हुई ? पर ऐसा नहीं है। बोलना सब जानते हैं यह सत्य है. पर वही बोली उत्तम होती है जो औरों को प्रिय हो और लाभकारी हो । जिस बात का कोई लाभ न निकले, ऐसी व्यर्थ की और बेसिर-पैर की हाँकने को बोली कहना बोली का अनादर करना है । हृदय की तराजू क्या है ? विवेक । विवेक की तराजू पर तोलकर ही मनुष्य को अपने विचार जबान से बाहर लाना चाहिये । जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता, वह खाली घड़े के समान निरर्थक ही शब्द करता रहता है, ऐसा मानना चाहिये । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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