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विवेको मुक्ति-साधनम्
साधु को तो साधारण व्यक्तियों की अपेक्षा भी अधिक ध्यान रखने की आवश्यकता है। उसे ख्याल रखना चाहिये कि परठने के स्थान पर भी कोई जीव-जंतु अथवा कीड़ी-मकोड़े के बिल आदि न हों अन्यथा अनेक जीवों की हिंसा होने की संभावना रहती है । साधु के लिये तो कहा गया है कि रात्रि को जिस स्थान पर वह परठने जाय, उस स्थान को दिन रहते ही भली-भांति देख-परख लेना चाहिये । क्योंकि रात्रि के समय उस स्थान को ठीक तरह से नहीं देखा जा सकता ।
मेरे कहने का अभिप्राय यह नहीं है कि केवल साधु को ही इन बातों का ध्यान रखना चाहिये, श्रावक को नहीं । ध्यान तो प्रत्येक व्यक्ति को रखना आवश्यक है किन्तु साधु महाव्रतों का धारी होता है अत: उसे सूक्ष्म-से-सूक्ष्म जीव की हिंसा से भी अपने आपको बचाना आवश्यक है और यह सब विवेक पर आधारित है। जो साधक विवेकी होगा वह अपने प्रत्येक कार्य को पूर्ण सावधानी एवं यतना पूर्वक करेगा। चाहे श्रावक हो या साधु हो, ज्ञानी हो या ध्यानी हो, वह अपने जीवन को ऊंचाई की तथा श्रेष्ठता की ओर तभी ले जा सकेगा, जबकि अपनी प्रत्येक क्रिया और आचरण में विवेक रखेगा। इमारे चेहरे पर दो आँखें हैं किन्तु अगर अन्तर् में विवेक-रूपी आँख नहीं है तो ये ऊपरी दोनों आँखें होते हुए भी हम अंधे के समान हो साबित होंगे।
एक गुजराती कवि ने विवेक का महत्त्व बताते हुए एक भजन में लिखा है
विवेक विना धर्म नहिं पामे, बिना विवेक समकित नव जामे ।
विवेक बिना मन रहे टांचू,
एक ववा बिना सघलू कांचू । __ कहा है-विवेक के अभाव में धर्म की प्राप्ति नहीं हो सकती तथा सम्यक्त्व यानी श्रद्धा भी कभी दृढ़ नहीं होती। हम उपदेश देते हैं और आप सुनते हैं । किन्तु वीतराग की यह वाणी किसके गले से उतरेगी ? यानी कौन इसे अपने जीवन में व्यवहृत करेगा ? वही, जिसमें विवेक होगा। अविवेकी व्यक्ति तो इस कान से सुन लेगा और उस कान से निकाल देगा। कबीर जी ने भी कहा है
समझा समझा एक है, अनसमझा सब एक । समझा सोई जानिये, जाके हृदय विवेक ।
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