SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आनन्द प्रवचन | पांचवां भागे पर शिष्य कुछ तो थका हुआ था, दूसरे लापरवाह भी था अतः उसने वस्त्र आदि तो जैसे-तैसे रख दिये पर पात्रों की झोली. को असावधानी से किसी ऊंचे स्थान पर जल्दी से रखने ही लगा था कि झोली पात्र समेत लुढ़क गई और नीचे जमीन पर गिर पड़ी। संत काष्ट के पात्र रखते हैं जो हलके होने के कारण काफी कमजोर भी होते हैं, अत: झोली के लुढ़ककर गिर जाने से वे सभी पात्र फूट गए। शिष्य कुछ क्षण भौंचक्का-सा खड़ा रहा और फिर गुरुजी के पास जाकर बोला- "गुरुजी झोली गिर पड़ी अतः पात्र तो सब फूट गए, अब भिक्षा किसमें लाऊँ ।" . गुरुजी सुनकर बड़े असमंजस में पड़े और बोले - “मैं तुमसे बार-बार कहता था कि सभी वस्तुएं एवं पात्र इत्यादि सावधानी से रखा करो। किन्तु तुमने मेरी सीख नहीं मानी । अब क्या किया जा सकता है ? इस छोटे से गांव में तो पात्र उपलब्ध हो नहीं सकते, अतः कल जब हम शहर में पहुँचेंगे, पात्रों की तलाश करके तभी भिक्षा ला सकेंगे।" शिष्य मन मारकर रह गया। वैसे भी विहार करके आया था अतः भूखा था पर उस दिन उसे उपवास करना पड़ा। किन्तु इस घटना से उसे भविष्य के लिये सीख मिल गई और उसने असावधानीपूर्वक काम न करने के लिये सदा के लिये कान पकड़ लिये। इसीलिये शास्त्रों में साधु के लिये अत्यन्त सावधानीपूर्वक अपने भंडोपकरण उठाने और रखने का विधान किया गया है और उसे चौथी समिति “आयाणभंडमत्तनिक्षेपणा-समिति' नाम दिया है। प्रत्येक साधक को संवर-धर्म की आराधना के नाते एवं सभ्यता के नाते भी इसका पूर्णतया पालन करना चाहिये । ___ अब हम संवर के पांचवें भेद और पांचवी समिति पर आते हैं। पांचवीं समिति है-"उच्चार-पासवण-जल-खेल-संघयण-परिठावणियासमिति ।" शरीर आहार ग्रहण करता है और उसका रस जब वह ले लेता है तो व्यर्थ की वस्तु को मल-मूत्रादि के रूप में बाहर फेंकता है। साधुभाषा में उसे एरिष्ठापना अथवा परठना कहते हैं । अगर इस विषय में ध्यान न रखा जाय तो कभी-कभी भारी विवाद उठ खड़ा होता है । मान लीजिये, अगर आपको थूकना है तो पहले आपको देखना चाहिये कि खिड़की और झरोखे से थूकने पर किसी राह चलते व्यक्ति पर तो वह नहीं गिरता है । असावधानी रखने पर अगर किसी व्यक्ति के शरीर पर गंदगी गिरी तो लड़ाई-झगड़े और मार-पीट तक की नौबत आ सकती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy