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मधुकरी
२७ पूज्यपाद श्री त्रिलोकऋषि भी महाराज जी जब प्रथम बार घोड़नदी पधारे और भिक्षा के लिये गये तो एक गृहस्थ ने पहले तो तिरस्कारपूर्वक कह दिया"यहां कुछ नहीं है।" किन्तु जब महाराजश्री शांतिपूर्वक दस-पांच कदम आगे बढ़ गए तो पुनः बुलाकर कहा- "देखो ! घर में कुछ हो तो ले लो।"
गुरुदेव ने चुपचाप जो मिला ले लिया। न तो उन्होंने दुबारा लौटने में क्रोध या अनिच्छा प्रदर्शित की और न ही गृहस्थ से पूछा कि पहले आपने क्यों इनकार किया था ? इसी प्रकार राग-द्वेष रहित होकर आहार लाने और राग-द्वेष रहित होकर सेवन करने से ही कर्मों की निर्जरा होती है तथा एषणासमिति का पालन होता है।
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