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सच्चै महाजन बनो !
धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनो !
पयूषण पर्व के इन शुभ दिनों में 'अन्तगड़ सूत्र' पढ़ा जा रहा है। इसका अन्तगड़ नाम 'अन्तकृत' भावना को लेकर रखा गया है । इस शास्त्र में उन महान् आत्माओं का चरित्र कहा गया है, जिन्होंने अपनी अन्तरात्मा के समस्त कर्म-बन्धनों को तोड़ दिया है।
हर वर्ष शास्त्र क्यों पढ़ना चाहिए ? आप लोगों के दिल में विचार आता होगा हर वर्ष इसी शास्त्र को क्यों पढ़ते हैं ? पर भाइयो ! हमें अनेक वस्तुओं की प्रतिदिन जरूरत पड़ती है। और फिर रोटी तो प्रतिदिन एक बार खाने से भी काम नहीं चलता। दिन में दो-तीन बार भी खाते हैं । वह क्यों ? इसलिए कि वह शरीर की खुराक है । पर आत्मा की भी तो खुराक होती है। वह भी प्रतिदिन आहार मांगती है। किन्तु उसे खुराक देने में आप कितनी लापरवाही और कंजूसी करते हैं ? यह इसलिए ही न, कि इसकी भूख का आपको पता नहीं चलता और प्रतिदिन इसे देने की तो बात ही क्या है, साल में आठ दिन भी सच्चे हृदय से देना नहीं चाहते ।
___कई बार हमारे भाई कहते हैं - 'महाराज ! केवल रिवाज होने के कारण ही 'अन्तगड़ सूत्र' हर वर्ष पढ़ते हैं या इससे कुछ लाभ होता है ?" उन अज्ञानी भाइयों को क्या लाभ होता है यह तो हम प्रत्यक्ष रूप से बता नहीं सकते क्योंकि लाभ हथेली पर रखकर दिखाने वाली वस्तु नहीं है। किन्तु उन्हें यह समझा जरूर सकते हैं कि महापुरुषों के चरित्र पढ़ने से हम उन भव्य-आत्माओं के सद्गुणों के
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