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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग पर यह हमारा उद्देश्य तभी सफल हो सकता है, जबकि हम संसार के प्रपंचों को कम से कम करें तथा शरीर पर ममता न रखकर इसे तपस्या, त्याग एवं धर्म क्रियाओं में लगाएँ। पर्युषण पर्व के दिन प्रतिवर्ष आकर हमें यही प्रेरणा देते हैं कि हम अपने आप में अधिक उत्साह और अधिक सजगता लाएं तथा जीव और जगत के रहस्य को समझते हुए आत्म-विश्वास के साथ सम्यक् ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र की आराधना करें तथा दान, शील, तप एवं भावमय जीवन बनाएँ । समस्त सद्गुणों के संगठन से ही श्रेष्ठ जीवन का निर्माण होता है।
ऐसा किये बिना आत्म-शुद्धि संभव नहीं है और आत्म-शुद्धि के बिना मुक्ति की आशा रखना व्यर्थ है । अतः आत्म-बन्धुओ ! हमें जागना है और जागकर अपनी आत्मा को उसके शुद्ध स्वरूप में लाना है। वही हमारे जीवन का उद्देश्य है और वह उद्देश्य हमें पूरा करके जीवन को सफल बनाने का प्रयत्न करना है।
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