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आनन्द प्रवचन | पांचवां भांग राजा को बड़ा आश्चार्य हुआ कि दोनों ही तोते हैं किन्तु ऐसे विपरीत भाव व्यक्त क्यों करते हैं ? पर जानकारी करने पर मालूम हुआ कि संगति के कारण इन दोनों में इतना अन्तर आया है। भीलों के साथ रहने वाला तोता वैसी ही बातें सुनता रहता है अतः स्वयं भी इसी प्रकार बोलता है और ऋषियों के आश्रम में रहने वाला पूजा-पाठ, भक्ति, सेवा आदि आदि वाक्य सुनता है अतः ऐसी भाषा सीख गया है। - तो बन्धुओ, इसीलिए आपसे बार-बार सत्संगति करने के लिए कहा जाता है। अब विशेष बुद्धि और विवेक से रहित पक्षियों पर भी संगति का ऐसा असर पड़ता है तो फिर मनुष्यों का तो मनुष्यों पर प्रभाव पड़ना कौन सी बड़ी बात है। पर आप लोग इस बात का कहां ध्यान रखते हैं ? आप कभी यह नहीं देखते कि आपके बालक कैसे व्यक्तियों की संगति करते हैं ? उन्हें धर्म-स्थान में लाने के लिए कहें तो आप उत्तर देते हैं-"महाराज ! क्या करें आजकल के बालक माता-पिता का कहना ही नहीं मानते । हम तो बहुत कहते हैं पर लड़के आते ही नहीं।"
__ मुझो यह सुनकर बड़ा खेद होता है कि जब आप अपने बच्चों पर अपना प्रभाव नहीं डाल सकते तथा उनमें अच्छे संस्कार आरोपित नहीं कर सकते तो फिर ने कब धर्म के महत्व को समझेंगे और कब जीवन की सार्थकता के विषय में सोचेंगे ? उनके जीवन का सुनहरा समय या कवि के शब्दों में नीके दिन क्या यों ही नहीं चले जाएंगे?
भजन में आगे भी कहा गया है
'जैसे पानी बीच बतासा मूरख फंसे मोह की पासा।' अर्थात् भले ही यह जीवन हमें पचास साठ तथा सत्तर वर्ष का भी दिखाई देता है। किन्तु जबकि हम अनन्तकाल से इस संसार में भ्रमण कर रहे हैं तो उस समय को देखते हुए तो यह केवल इतना ही है जितना समय पानी में डाले हुए बतासे को घुलने में लगता है। इतने से समय में ही यह समाप्त होने वाला है ।
किन्तु मूर्ख व्यक्ति फिर भी जीवन के मोह में ही पड़ा रहता है। वह इस बात की आशा करता है कि हम सौ वर्ष जीएंगे। पर क्या कोई इसकी गारण्टी.ले • पाता है ? अनेकों जीव इस संसार से नित्य जाते हैं। कोई बैठा-बैठा मित्रों से प्रेमा
लाप करता हुआ अचानक ही समाप्त हो जाता है, कोई सड़क पर ठोकर लगते ही यहाँ से प्रयाण कर जाता है, कोई हास्य विनोद में मग्न है, किन्तु उसी क्षण हृदय की गति रुकते ही निश्चेष्ट हो जाता है।
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