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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग बालक जिस समय जन्म लेता है उसी क्षण से उसकी आयु घटती जाती है और युवावस्था के पश्चात् तो शरीर क्षीण होता ही चला जाता है। किन्तु इस बीच में भी काल तो सदा ही मस्तक पर मँडराता रहता है तथा बचपन, जवानी या बुढ़ापे में जब भी दाव लगता है, झपट्टा मारकर जीव को ले जाता है ।
इसलिए कवि कहता है कि मन में निश्चय पूर्वक शरीर की नश्वरता को और काल के किसी भी समय के आगमन को समझते हुए निरंजन प्रभु से प्रेम करो और उनकी भक्ति-उपासना करके अपने इस सुनहरे समय को सार्थक करो।
प्रत्येक व्यक्ति को शास्त्र-स्वाध्याय से, धर्मोपदेश श्रवण से एवं सत्संग से लाभ उठाकर जीवन के महत्त्व को तथा साधना के सच्चे मार्ग को समझना चाहिए ।
संगति का फल
प्रत्येक प्राणी के जीवन पर संगति का बड़ा भारी प्रभाव पड़ता है । मनुष्य का जीवन वैसा ही बनता है, जैसे उसके साथी होते हैं । एक पाश्चात्य विद्वान् 'गेटे' ने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही है
“Tell me witt whom thou art found and I will tell thee who thou art."
-मुझे बताइये आपके संगी-साथी कौन हैं और मैं बता दूंगा कि आप कौन हैं।
दार्शनिक गटे के कथन का आशय यही है कि किसी व्यक्ति के चरित्र के बारे में अगर हमें सही जानकारी करनी है तो बिना उससे कुछ पूछे भी, केवल उसके साथियों और मित्रों के आचरण के आधार पर ही उस व्यक्ति के चरित्र को जाना जा सकता है।
इससे यह शिक्षा मिलती है कि व्यक्तियों को सदा सज्जन पुरुष की संगति करनी चाहिये । उससे दो लाभ होते हैं—पहला तो यह कि सत्संगति करने से जिनकी संगति की जाती है, उनके सद्गुणों का, सदाचार का एवं सुन्दर विचारों का हम पर प्रभाव पड़ता है यानी हममें भी उनका आविर्भाव होता है। और दूसरा लाभ यह होता है कि हम जिनकी संगति करते हैं उन्हें देखकर अन्य व्यक्ति हमें भी उनके समान सद्गुण सम्पन्न समझते हैं । तो, संगति का जीवन पर बड़ा प्रभाव पड़ता है
और दूसरे शब्दों में संगियों के गुणानुसार ही संग करने वाले के जीवन का निर्माण होता है । एक छोटा सा उदाहरण इस विषय को स्पष्ट करता है ।
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