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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग
पर बंधुओ, प्राचीन काल में ऐसा नहीं था । शास्त्रों में आपने सार्थवाह शब्द कई बार पढ़ा होगा | सार्थ यानी समूह, और वाह यानी वाहक, या वहन करने वाला । इस प्रकार सार्थवाह का अर्थ समूह को लेकर चलने वाला होता है ।
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उस काल में जो सार्थवाह होते थे यानी सम्पन्न व्यक्ति कहलाते थे, वे व्यापार के लिए जाते समय गाँव के सभी व्यक्तियों को आमंत्रित करते हुए कहते थे - "मैं व्यापार के लिए विदेश जा रहा हूं, जिसे भी मेरे साथ चलना हो प्रसन्नता पूर्वक चल सकता है। मार्ग का व्यय, खाने-पीने का खर्च तथा वस्त्र एवं औषधि आदि जो भी आवश्यक होगा, सभी का खर्च मैं करूंगा और व्यापार में लाभ हुआ तो सबको हिस्सा दूँगा तथा हानि हुई तो वह मैं ही सहन करूंगा ।"
कितनी उदारता, कितना स्नेह और कितने परोपकार की उनमें भावना थी ? वे भी तो आप जैसे ही व्यक्ति होते थे किन्तु समाज का और जाति का भला हो यह प्रबल भावना उनके अन्तःकरण में विद्यमान रहती थी । आज कहाँ हैं वैसे लोग ? आज तो सार्थवाह में 'व' और जुड़ गया है तथा सार्थवाह के स्थान पर स्वार्थवाह हो गया है । सभी की भावना यह हो गई है कि मुझे अधिक से अधिक मिले ।
आपका धर्म क्या कहता
पर बंधुओ ! ऐसी भावना रखने से क्या आपके समाज और आपकी जाति का उत्थान हो सकेगा ? क्या आपके धर्म की रक्षा होगी ? है ? यही तो, कि संसार के समस्त प्राणियों पर करुणा का पास रोटी है तो दूसरे को भूखा मत सोने दो । आपको बताया था कि एक कबूतर के लिए भी वह भी कम होने पर सम्पूर्ण शरीर ही अर्पण कर दिया था ।
भाव रखो, अगर तुम्हारे कल मैंने राजा शिवि के बारे में उन्होंने अपने शरीर का मांस और
अब आपको इतना त्याग करने की तो आवश्यकता नहीं पड़ती, पर केवल स्वार्थ का त्याग तो करना चाहिए । इसी प्रकार संसार के समस्त प्राणियों की भी फिक्र आप न करें, किन्तु अपने समाज के अनाथ, असहाय और अभावग्रस्त व्यक्तियों का ध्यान तो रखें। हम साधु हैं। अगर हमें एक स्थान पर सुविधाएं न मिलीं तो फौरन हम दूसरे गाँव की ओर चल देंगे । किन्तु आपके गाँव में तथा समाज में रहने वाले निराश्रित व्यक्ति और अनाथ बहनें कहाँ जाएँगी ? उनके लिए तो आप लोगों का ही सहारा है । और आप संगठित होकर ही उनका सहारा बन सकते हैं ।
तो मैं बता रहा था कि असंगठित व्यक्तियों के उदाहरणों में वणिकों का नाम सर्वप्रथम आया है । आप इस कलंक को मिटाएँ तथा स्वार्थवाहन बनकर सार्थवाह बनें, मेरी यही कामना है । आप यह भी कभी न भूलें कि सार्थवाह बनने पर आपकी करणी आपके साथ चलेगी और स्वार्थवाह बनने पर जो इकट्ठा करेंगे
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