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नीके दिन बीते जाते हैं
को हासिल हो तथा निराश्रित भाई-बहनों को संरक्षण मिले इसके लिए धन, बुद्धि और विवेक से सम्पन्न लोगों को कदम उठाना चाहिए।
__ संगठन किन में है? कहते हैं कि संगठन का सबक तो काक, कायस्थ और कुक्कुट से लेना चाहिये । कौओं में संगठन की भावना कितनी जबर्दस्त होती है ? उन्हें कहीं भी कोई खाद्य पदार्थ दिखाई दे जाय, फौरन काँव-काव करके अपनी जाति के अन्य कौओं को बुला लेते हैं। कोई भी कौआ कभी अकेला कुछ नहीं खाता।
इसी प्रकार कायस्थ जाति के लिये भी कहा जाता है कि कायस्थ जाति बड़ी होशियार और संगठित होती है । किसी कचहरी में अगर एक कायस्थ पहुंच गया तो अपने बल पर दस-बीस और भी इकट्ठे कर लेगा।
तीसरा संगठनप्रेमी कुक्कुट माना जाता है। पूरे पर या उकरड़ी पर उसे अन्न के दाने दिख जायें तो उन्हें अपने पैरों से खोद-खोदकर दूर उछालता जाता है ताकि अन्य मुर्गे भी सरलता से उन्हें खा सकें। इस प्रकार काक, कायस्थ और कुक्कुट इन तीनों के द्वारा सम्प का उदाहरण दिया जाता है ।
असंगठित कौन रहते हैं ? अब असंगठितों के विषय में भी सुनिये ! जिनमें संगठन नहीं है, वे हैं'वणिक, श्वानो, गजाः द्विजाः ।'
__ असंगठित व्यक्तियों में सर्वप्रथम वणिक का नाम आया है । वणिक अर्थात्व्यापारी । इनके असंगठन के विषय में तो आप भली-भांति जानते ही होंगे क्योंकि आप में से अधिकांश व्यापारी ही हैं। फिर अपनी प्रवृत्तियों से अनजान नहीं हो सकते । कहने वाले ने इसीलिए कहा है कि एक व्यापारी दूसरे व्यापारी की उन्नति कभी नहीं देख सकता । अब उनसे पूछा जाय कि भाई ! तुम दूसरों को देखकर क्यों जलते हो? तुम्हें उतना ही तो मिलेगा जितना पूर्वजन्म में पुण्य का उपार्जन किया है। जितना बोया जाता है वही तो फल देता है। तुमने अगर बोया नहीं होगा तो अब मिलेगा कैसे ? पर यह कहाँ सोचते हो आप लोग ? आप चाहे अपना नुकसानकर लेंगे पर दूसरे का भी नुकसान हो यह प्रयत्न जरूर करेंगे । वह कैसे ? इस प्रकार कि आपके पड़ोसी व्यापारी को नफा हो रहा है तो आप अपने वस्तुओं का दाम उस व्यापारी के दामों से दो पैसे कम कर देंगे । इससे आपका भी नुकसान हुआ कि नहीं ? आज के युग में तो बहुत कम ऐसे व्यक्ति होंगे जो अपने से हीन व्यक्ति को सहारा देकर उठाने का प्रयत्न करते होंगे।
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