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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग
में गये थे किन्तु अब तक लौटे नहीं, न ही बहुत दिनों से उनके कोई समाचार ही मुझे मिले हैं ।"
संत ज्ञानी और सिद्ध पुरुष थे । उन्होंने कह दिया- " तुम्हारा पति कल आ जाएगा ।"
यद्यपि साधु को सत्य होने पर भी निश्चयकारी भाषा कभी नहीं बोलनी चाहिये, किन्तु उनसे भूल हो गई और उन्होंने स्त्री को निश्चयात्मक वचनों से दिलासा दे दी ।
राजपूत रमणी को मुनि पर असीम श्रद्धा और विश्वास था । उसने संत की बात को पूर्ण सत्य माना और अपार खुशी से विह्वल होकर घर चली गई । घर पहुँचते ही उसने पति के स्वागत की तैयारियाँ प्रारम्भ कर दीं । सम्पूर्ण घर को उसने साफ किया, सजाया और घर दीपावली के त्यौहार पर जिस प्रकार सुन्दर लगता है, उसी प्रकार जगमगाने लगा । वह दिन उसने घर की काया पलट में लगाया और अगले दिन स्वयं अपने शरीर को सजाने में लग गई । उबटन लगाकर स्नान किया तथा सुन्दर वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर पति की प्रतीक्षा करने लगी ।
संत के कथनानुसार सत्य ही स्त्री का पति दिन के तीसरे प्रहर में घोड़ी पर बैठकर अपने घर लौट आया । राजपूत स्त्री प्रसन्नता से पागल सी होकर पति के स्वागत के लिये बाहर आई ।
किन्तु राजपूत युवक अपनी पत्नी को देखकर चकित रह गया । वह अपने हृदय में विचार करता हुआ आया था कि उसकी न जाने कैसी दशा होगी ? दु.ख के कारण उसका चेहरा मुर्झाया हुआ और अत्यन्त क्लांत होगा, उसे न खाने का ध्यान होगा, न पहनने का ही होश रहा होगा । पर जब घर आकर उसने देखा कि सम्पूर्ण घर सजावट से जगमगा रहा है और उसकी स्त्री के चेहरे पर दुःख या चिंता का लेश भी नहीं है, उलटे वह वस्त्राभूषणों से लदी हुई परम प्रसन्न नजर आ रही है तो वह संदेह से भर गया कि उसकी पत्नी अवश्य ही दुराचारिणी है ।
घोड़ी से उतरते ही उसने क्रोध से पूछा
"यह सब शृङ्गार और सजावट किसके लिये हैं ?"
पति की बात सुनते ही स्त्री कुछ क्षणों तक स्तंभित-सी खड़ी रह गई । पर फिर अपने को संभालकर नम्रता पूर्वक बोली - " यह सब कुछ आपके लिये ही है । यहाँ पर जिन मुनि का चातुर्मास है, उन्होंने मुझे बताया था कि आप आज आएँगे ।"
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