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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग
लिये प्रयत्न नहीं कर सकते । वे केवल पूर्व-पुण्यों के बल पर स्वर्गीय सुखों का उपभोग करते हैं किन्तु मोक्ष के लिये करनी तो उन्हें पुनः मनुष्य-जन्म लेकर ही करनी पड़ती है। इसीलिये मानव-जन्म को अमूल्य माना गया है। इस जीवन को अरबपति अपनी समस्त सम्पत्ति देकर या चक्रवर्ती सम्राट् अपने छः खंड के राज्य को न्योछावर करके भी खरीद नहीं सकता। केवल महान पुण्यों के उदय से ही यह अनमोल जीवन प्राप्त होता है। इसीलिए इसे कभी निरर्थक नहीं गंवाना चाहिए और इसके प्रत्येक पल का सदुपयोग करना चाहिये ।
प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि - नो धत्तं किल मानुषम् वरमिदम् मित्राय पुत्राय वा,
नो धत्तं किल मानुषम् वरमिदम् चित्ताभिरामास्त्रियः । नो धत्तं किल मानुषम् वरमिदम् लाभाय लक्ष्म्यास्तथा,
किन्त्वात्मोद्धरणाय जन्म जलधेः धत्तं वरम् मानुषम् ॥ संस्कृत के इस श्लोक में कवि बड़ी सुन्दर बात कहता है कि हमें यह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य-जन्म प्राप्त हुआ है । आपके हृदय में तर्क हो सकता है कि हमारे तो देवता श्रेष्ठ हैं, किन्तु देवता मनुष्यों से श्रेष्ठ क्यों नहीं हैं, यह मैं अभी-अभी आपको बता चुका हूँ कि ऐश्वर्य और सुख की दृष्टि से जरूर देवता मनुष्य से अच्छे हैं किन्तु परलोक के लिए कमाई करने की दृष्टि से नहीं। देव और मनुष्य में यही अन्तर है कि देवता पहले की हुई कमाई को समाप्त करते हैं और मनुष्य आगे के लिये उपार्जन कर लेता है।
तो कवि का कथन यही है कि यह दुर्लभ मानव जन्म हमें मित्र या पुत्र की प्राप्ति के लिए नहीं मिला है, चित्त को प्रसन्न करने वाली स्त्री प्राप्त कर लेने के लिए नहीं मिला है और लक्ष्मी तथा अन्य किसी भी प्रकार का बहुत लाभ हो, इसके लिए भी नहीं मिला है । यह हमें इसलिए मिला है कि इसकी सहायता से हम ओत्मा का उद्धार करें तथा संसार-सागर को पार कर सकें।
__ आप लोग पुण्यवान हैं कि आपको मनुष्य जन्म तो मिला ही है साथ ही संतों की संगति एवं शास्त्र-श्रवण का अवसर भी मिला है । आप बुद्धिमान हैं अतः विचार करना चाहिए कि मित्र, पुत्र, स्त्री एवं धन आदि तो पुण्योदय से प्राप्त हो ही जाता है पर आत्मा का उद्धार सहज में नहीं हो सकता। इसलिए सारा प्रयत्न तो इसी कार्य के लिये करना है । पर यह होना भी सहज नहीं है, इसके लिये बड़ी साधना करनी पड़ेगी और तप और त्याग को अपनाना होगा।
हमारे देश में तो ऐसे-ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने सांसारिक पदार्थों का तो
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