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स्वागत है पर्वराज !
धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो !
आज से लोकोत्तर पर्व, जो पर्युषण पर्व कहलाता है उसका प्रारम्भ हो रहा है। पर्वाधिराज पर्युषण पर्व आध्यात्मिक पर्यों में एक विशिष्ट महत्त्व लिये हुए हैं और इसलिए सर्वश्रेष्ठ पर्व कहलाता है। वैसे प्रत्येक हिन्दू आत्मोत्थान के लिए अनेकों प्रकार के अनुष्ठान करता है किन्तु जैनधर्मावलम्बियों के द्वारा किये जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों में यह सर्वोपरि अनुष्ठान है । जबकि आत्म-मुक्ति का इच्छुक व्यक्ति इन आठ दिनों में सांसारिक प्रपंचों से कुछ अंशों में मुक्त होकर आध्यात्मिकसंसार में विचरण करता है।
पर्वो का महत्त्व आज के इस युग में जहाँ व्यक्ति भौतिक वस्तुओं की चकाचौंध में अपने अन्तर् की ओर झांकने का भी अवकाश नहीं पाता वहाँ पर्युषण जैसे पर्व प्रतिवर्ष अपने साथ कुछ नई प्रेरणा, उल्लास एवं नूतन सन्देश लेकर उपस्थित होते हैं। वह सन्देश है-आत्म-जागृति, आत्म-उत्थान एवं कर्म-मुक्ति का ।।
__इन आध्यात्मिक पर्वो के कुछ दिनों में मानव क्रोधादि कषायों और मन के कामादि विकारों से भी कुछ परे हो जाता है। वह जो कुछ सदा नहीं कर पाता वह इन आध्यात्मिक पर्वो में और विशेषकर पर्युषण पर्व के आठ दिनों में करता है। यद्यपि शुभ का आराधन तो यथाशक्य प्रतिदिन ही करना चाहिए । आत्म उद्धार के कार्यों के लिए कोई निश्चित समय नहीं होता। प्रत्येक पल धर्म की आरा. धना के लिए आवश्यक होता है ; किन्तु उस हालत में जबकि सांसारिक कार्यों के
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