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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग
यद्यपि इस कार्य में उन्हें अनेक परिषहों को सहन करना पड़ता है तथा मार्ग में आहार-पानी की, ठहरने के स्थानों की साथ ही अन्य अनेक कठिनाइयों का मुकाबला करना पड़ता है । किन्तु इन सभी को वे पूर्ण समभाव एवं शांतिपूर्वक सहन करते हुए अपने ज्ञान-ध्यान, चिंतन-मनन एवं पठन-पाठन तथा स्वाध्याय आदि की समस्त क्रियाओं को बिना समय का अतिक्रमण किये हुए करते हैं। न वे ऊंचे-नीचे स्थान की परवाह करते हैं और न शीतादि परिषह की ।
ऐसे ही संत सच्चे गुरु कहलाते हैं और जैसा कि अभी भजन में कहा गया है, जिज्ञासु प्राणी उनकी खोज में विकल रहते हैं।
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