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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाम
धर्म की सौगन्ध खा लेता है। कोर्ट-कचहरियों में तो झठ का बोलबाला ही रहता है । दो पक्ष होते हैं । उनमें से अगर एक सच्चा होता है तो दूसरा निश्चय ही गलत होता है । किन्तु वह स्वयं झूठी बातें कहता है, झूठी गवाहियाँ दिलाता है और उसके वकील भी उस असत्य को सत्य सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं । यह सब केवल लोभ के कारण ही होता है । मुकदमा लड़ने वाला किसी के धन, मकान अथवा खेत पर कब्जा करना चाहता है, या अपने किसी अपराध को छिपाना चाहता है। और वकील अपनी फीस के लोभ में उसकी पैरवी करता है। इन सभी बातों के मूल में लोभ ही है।
इन सबके अलावा लोग प्रायः हंसी-मजाक में भी झूठ बोलते हैं। यद्यपि मजाक में बोला हुआ झूठ अधिक कषाय पर आधारित नहीं होता, किन्तु उससे अनेक बार व्यक्तियों का मन दुःखी अवश्य होता है। अतः हंसी-मस्करी से भी झूठ नहीं बोला जाना चाहिये। मराठी भाषा में कहा गया है
"अशी ही थट्टा, भलभत्याला लावला बट्टा ।" हँसी में असत्य बोलने से भी पाप-कर्म की पोटली तो बँधती ही है। अतः असत्य तो किसी भी अवस्था में नहीं बोलना चाहिये।
___ मनुष्य को अनेक पुण्यों के फलस्वरूप तो पहले जीभ प्राप्त होती है और उसके पश्चात् भी जब अनन्त पुण्य-कर्मों का उदय होता है तो जीभ के द्वारा स्पष्ट बोलने की अर्थात् अन्य व्यक्ति उसे समझ सकें, ऐसी भाषा बोलने की क्षमता प्राप्त होती है।
तो बुद्धिमान् पुरुष बड़ी भारी कीमत देने पर प्राप्त हुई भाषा-शक्ति को निरर्थक ही नहीं गंवा देता अपितु उससे नवीन पुण्यों का संचय कर लेता है। हमारे शास्त्रों में पुण्य के नौ भेद किये जाते हैं। उनमें से एक भेद वचन-पुण्य भी है । अतः स्पष्ट है कि विवेक के द्वारा बोलने से अनन्त पुण्यों का संचय किया जा सकता है । आवश्यकता है केवल अपनी भाषा और वचनों पर काबू रखने की। बहुत सोचसमझ कर बोलने पर ही वाणी का लाभ उठाया जा सकता है। , स्थानांग सूत्र के छठे अध्याय में कहा भी गया
इमाइ छ अवयणाई वदित्तएअलियवयणे, हीलियवयणे, खिसिन वयणे, फसवयणे, गारत्थियवयणे, विउसंवितं वा पुणो उदीरीत्तए ।
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