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साधू तो रमता भला, दाग न लागे कोय
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का परिणाम है । कितने खेद की बात है। इसीलिये महापुरुष शरीर की वास्तविकता को जानकर उससे मोह छोड़ देते हैं।
अब वह बात नहीं है हमारे शास्त्रों में सनत्कुमार चक्रवर्ती का उदाहरण आता है कि वे अत्यधिक सौन्दर्य के धनी थे। उनके अद्वितीय रूप को देखने के लिये स्वर्ग से देवता भी मृत्युलोक में आया करते थे ।
एक बार एक देव के हृदय में भी यही भावना आई कि सनत्कुमार जी के सौन्दर्य की बड़ी प्रशंसा सुनी जाती है अतः मैं भी उनके उस असाधारण रूप को देखू।
यह विचार आते ही वह ब्राह्मण का वेश धारण करके सनत्कुमार चक्रवर्ती के राज्य में आया और उनके महल तक जा पहुंचा। महल के द्वार तक पहुँचकर उसने अन्दर महाराज को सूचना भिजवाई कि एक ब्राह्मण बहुत दूर से आपके दर्शनार्थ आया है। महाराज ने उस ब्राह्मण वेशधारी देव को अन्दर बुलवाया। और उससे मुलाकात की।
जिस समय चक्रवर्ती सनत्कुमार ब्राह्मण से मिले उस समय वे स्नानादि के लिये जा रहे थे और शरीर पर सुन्दर वस्त्राभूषणों को उन्होंने धारण नहीं किया था। किन्तु ब्राह्मण ने जब उनके 'दर्शन किये तो वह गद्गद् होकर बोल उठा
"महाराज ! आपका सौन्दर्य मैंने जैसा सुना था वैसा ही अनुपम एवं अतुलनीय है। संसार का कोई भी व्यक्ति आपके सौन्दर्य के समक्ष नहीं ठहर सकता। धन्य हैं आप जिन्हें विधि ने सम्पूर्ण सौन्दर्य को एक ही स्थान पर एकत्र कर आपके शरीर का निर्माण किया है।"
ब्राह्मण के वचन सुनकर चक्रवर्ती महाराजा गर्व से भर गए और बोले"ब्राह्मण देवता ! अभी आपने मेरे रूप को बराबर कहाँ देखा है ? इस समय तो मेरे शरीर पर न सुन्दर वस्त्र हैं और न आभूषण ही । अगर मेरा सौन्दर्य ही देखना है तो जब मैं वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर दरबार में आऊं तब देखना।" ब्राह्मण राजा की बात सुनकर पुनः दरबार में आने का कहकर वहां से चला गया ।
समय पर दरबार लगा और चक्रवर्ती सनत्कुमार बहुमूल्य वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर दरबार में आए। सचमुच ही उनका सौन्दर्य उस समय अनेक गुना अधिक दिखाई दे रहा था।
महाराज सिंहासन पर बैठे और उसके पश्चात् समस्त दरबारी भी अपने
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