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________________ २८२ आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग धर्म के बिना और कुछ भी उसका अपना नहीं है। धर्म ही उसका सच्चा साथी है और वही उसे शाश्वत सुख प्रदान करने वाला है। आदिपुराण में भी बताया है। धर्मो बन्धुश्च मित्रश्च धर्मोऽयं गुरुरङ्गिनाम् । तस्माद् धर्मे मति धत्स्व स्वर्मोक्षसुखदायिनि । -१०/१०६ अर्थात्-धर्म ही मनुष्य का सच्चा बंधु है, मित्र है और गुरु है । इसलिये स्वर्ग एवं मोक्ष के सुख देने वाले धर्म में बुद्धि को स्थिर करना चाहिये। वस्तुनः यह संसार और यहां तक कि शरीर भी जीवात्मा का नहीं है। शरीरों की प्राप्ति तो अनेकों बार हो चुकी है और हर बार वे आत्मा का साथ छोड़ चुके हैं, तब फिर यह मनुष्य शरीर ही कब आत्मा के साथ रहने वाला है। यह तो केवल कारागार है जो कुछ समय तक उसे अपने में कैद रखता है। एक गुजराती के कवि ने भी आत्मा को पोपट यानी तोते की संज्ञा देते हुए उसे समझाया है हे पोपट, आ पिंजर नहिं तारू अन्ते उडि जाव' पर थारू । छे, परन पण परिचय थी तू, मानो बैठो मारू, ___ क्या ने तू क्या नू ये पिंजर, जो समजे तो सारू । कवि कहता है- अरे पोपट ! तू जिस शरीर को अपना समझ रहा है, यह शरीर तेरा नहीं है । यह तो केवल पिंजरा है, जिसमें तू अभी कैद है और अंत में एक दिन इसे छोड़कर तुझे उड़ जाना पड़ेगा। इसलिये तू भली-भांति यह समझ ले कि तू क्या है और ये शरीर रूपी पिंजरा क्या है । यानी तू तो अनन्त शक्तियों से सम्पन्न और अनंत ज्ञान से युक्त ऐसी आत्मा है जो यद्यपि अनन्त काल से कर्मों का भार लिये ससार-परिम्रमण कर रही है, किन्तु चाहे तो क्षण मात्र में कर्म-मुक्त होकर सिद्ध स्थान प्राप्त कर सकती है, पर यह शरीर जड़ है और किसी समय तेरा साथ छोड़कर मिट्टी में मिल सकता है। आगे कहा है मांस रुधिरमय अति दुर्गन्धि, नरक समान नठारू, तेने तू कंचन सम माने, आवडू सू अंधारू ? शरीर कैसा है यह बताते हुए कहा है-यह देह मांस एवं रुधिर से निर्मित अत्यन्त अशुचिकर और दुगंधमय है । यहाँ तक कि नरक से भी अधिक निकृष्ट है। फिर भी व्यक्ति इसे कंचन के समान सुन्दर मानता है, यह उसके अज्ञान-रूपी अंधकार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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