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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग
लगे रहने से वे हमसे दूर रहते हैं यानी प्राप्त नहीं होते। किन्तु जब हम उन्हें पाने का यत्न छोड़ देते हैं तो वह स्वयं ही हमारी आत्मा में निवास करने लगते हैं।
समय हो गया है बंधुओ, अतः अंत में केवल इतना ही कहूंगा कि "हमें संसार के नश्वर सुखों का ध्यान छोड़ देना चाहिये तथा शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिये त्याग-नियम और व्रतों को अपना कर उनका दृढ़ता से पालन करना चाहिए। यद्यपि साधना के इस मार्ग में अनेक बाधाएं और परिषह हमारे सामने आते हैं, किन्तु अगर हमारा मन मजबूत रहेगा तो कोई भी विकार उसे डिगा नहीं सकेगा और प्रत्येक परिषह हमारे समक्ष हथियार डाल देगा। आज हमारा विषय स्त्री परिषह पर ही चल रहा है । यह परिषह यद्यपि सभी परिषहों से प्रबल है, किन्तु हमारा आत्म-विश्वास और दृढ़ता उस पर भी सहज ही विजय प्राप्त कर सकती है।
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