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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग दोनों समान हैं - अनेक व्यक्तियों का और महापुरुषों का कथन है कि स्त्री पुरुष को बिगाड़ देती है, अथवा पतन की ओर ले जाती है । कबीर ने तो यहाँ तक कहा है
कामिनि काली नागिनी, तीनों लोक मंझारि ।
नाम-सनेही ऊबरे, विषिया खाये झारि ॥ अर्थात–तीनों लोकों में देखा जाय तो नारी काली नागिन के सदृश है। इसके दंश से केवल भगवान का नाम जपने वाले ही बचे हैं, विषय-भोगियों को तो वह एकदम से खा गई । किसी को भी उसने नहीं छोड़ा है।
पर बंधुओ, नारी जाति के प्रति ऐसी हीन भावना रखना निश्चित रूप से गलत है और भ्रम-मात्र है । यद्यपि ऐसी ही बातें राजा भर्तृहरि और संत तुलसीदास आदि ने भी लिखी हैं, किन्तु इनमें मुख्य रूप से उनका पुरुषों के प्रति पक्षपात है और इन बातों को कोई गंभीर विचारक अपने गले से नहीं उतार सकता। । जैसा कि हमारे शास्त्र कहते हैं--काम-विकार या उसका प्रलोभन संसार के अन्य समस्त प्रलोभनों से प्रबल है, यह सत्य है । किन्तु इसमें दोष उस विकार का है न कि सम्पूर्ण रूप से स्त्री जाति का, अगर भोगेच्छा प्राणियों को पतन की ओर अग्रसर करती है तो उसमें पुरुष व स्त्री दोनों ही समान रूप से भागीदार होते हैं।
___ अन्यथा हम तो देखते हैं कि दुर्व्यसनों को पुरुष जितने शीघ्र और अधिक संख्या में अपनाते हैं, स्त्रियाँ उन्हें ग्रहण नहीं करतीं। बाल-विधवा होकर नारी अपना सम्पूर्ण जीवन ब्रह्मचर्य की रक्षा करते हुए बिता देती है, पर पुरुष ऐसा नहीं कर पाते । वे स्त्री के मरते ही दूसरी, तीसरी और बुढ़ापे तक चौथी शादी करने में नहीं हिचकिचाते । क्या इससे स्पष्ट नहीं होता कि पुरुष का मन विकारी ज्यादा है या स्त्री का ?
हमारा इतिहास तो बताता है कि अनेकों सती नारियां पुरुषों को भी ठिकाने पर लाई हैं । सती राजीमती की कथा आप जानते ही हैं कि जब उसका देवर मुनि रथनेमि राजुल से आकर्षित हुआ और उसने अपना प्रणय निवेदन किया तो किस प्रकार राजीमती उसे पुनः मार्ग पर लाई ? चन्दनबाला की माता रानी धारिणी अपने सतीत्व की रक्षा के लिये जिह्वा खींचकर इस लोक से ही प्रस्थान कर गई। इसी प्रकार सती सुभद्रा, सीता, चंदनबाला आदि अनेकों सतियाँ इस धरती पर हुई हैं और आज भी हैं । कहने का सारांश यही है कि नारी-जाति की निंदा करना अनुचित
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