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प्रबल प्रलोभन
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आप श्रावकों के लिये भी स्वदार-संतोष की मर्यादा है। और उसमें भी अधिक से अधिक दिन एवं मुख्य तिथियों को तो नियम रखना ही चाहिये।
. अनेक श्रावक आज ही ऐसे हैं जो सपत्नीक होते हुए भी तीस,पैतीस और चालीस की उम्र से पहले ही पूर्ण ब्रह्मचर्य का नियम ले चुके हैं। मैं उन्हें धन्यवाद का पात्र मानता हूं कि घर में पत्नी के साथ रहते हुए भी वे ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।
तो हमारा आज का विषय 'स्त्री परिषह' पर चला है और इसमें बताया है कि साधु स्त्री के संसर्ग से हमेशा दूर रहे और अभी बताए हुए नौ उपायों को सदा ध्यान में रखता हुआ अपने मन को कभी भी विकारग्रस्त न होने दे। ऐसा करने पर ही वह पूर्ण शांति एवं संयम पूर्वक संवर के मार्ग पर चल सकता है तथा अपने आत्मकल्याण के उद्देश्य को सफल बना सकता है ।
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