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चिन्ता को चित्त से हटाओ
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यह अन्न-जल औरों को दे देने पर हमें भूखों मरना पड़ेगा। इस प्रकार चिन्ता का त्याग करने पर ही उन्हें भगवान के दर्शन हुए और यही हमारे शास्त्र कहते हैं कि 'अरति परिषह' को जीतने से साधक आत्मा के अधिक निकट पहुँचता है । दूसरे शब्दों में आत्म-रूप का दर्शन कर सकता है।
इसलिये आवश्यक है कि साधु चिन्ता का सर्वथा त्याग करे और श्रावक भी यथाशक्य संसार के समस्त पदार्थों और सांसारिक संबंधियों की ओर से अहर्निश बनी रहने वाली चिन्ताओं से अपने आपको अधिकाधिक मुक्त करे । यही 'अरति-परिषह' पर विजय प्राप्त करना होगा तथा आत्मोत्थान में सहायक बनेगा।
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