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दृष्टिपूतं न्यसेत् पादम्
दृष्टि से पवित्र हुई भूमि पर कदम रखो और उसके पश्चात् बिना देखे मत चलो। बिना देखे चलने से अनेक प्रकार की हानि होती है। प्रथम तो सूक्ष्म जीवों की हिंसा होती है अतः कर्मों का बन्धन होता है, दूसरे कांटा चुभ जाने से अथवा पत्थर आदि की ठोकर लगने से शरीर को कष्ट होता है।। एक राजस्थानी पद्य में बड़े मधुर ढंग से कहा गया है
नीचे जोयां गुण घणां, पड़ी वस्तु मिल जाय ।
ठोकर की लागे नहीं, जीव जन्तु बच जाय । यानी, नीचे देखकर चलने से कई लाभ होते हैं । एक तो यह कि कभी-कभी मूल्यवान वस्तुएँ भी अगर जमीन पर पड़ी हुई हों तो मिल जाती हैं, दूसरे कभी ठोकर भी नहीं लगती, तीसरे छोटे-छोटे निरपराध प्राणियों की हिंसा से भी व्यक्ति बच जाता है।
दूसरे शब्दों में न आत्म-विराधना होती है अर्थात् स्वयं के शरीर को चोट नहीं लगती और न पर-विराधना होती है क्योंकि दूसरे प्राणियों की हिंसा भी नहीं होती । अहिंसा का महत्त्व केवल हिन्दू ही नहीं मानते अपितु अन्य सभी धर्म समान भाव से मानते हैं। मुस्लिम धर्म भी कहता है
___ "जेरे कदम हजार जानस्त ।" अर्थात् पैर के नीचे हजारों जानवर हैं, अतः देखकर चलो ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रत्येक धर्मग्रन्थ में धर्म के मूल सिद्धान्त मान्य हैं । संवर के सत्तावन भेदों में प्रथम पाँच भेद पाँच समितियां हैं और पांच समितियों में पहली है ईर्यासमिति । यानी देखकर चलना। इस बात का कितना महत्त्व है, यह केवल जैनधर्म में ही नहीं अपितु मनुस्मृति और मुस्लिम ग्रन्थ के उदाहरण से भी आपको ज्ञात हो गया होगा।
ईर्यासमिति का पालन करना केवल साधु के लिये ही नहीं, वरन् प्रत्येक श्रावक और प्रत्येक स्त्री-पुरुष के लिये आवश्यक है। हमारी बहनें प्रायः गन्दा पानी तथा जूठन वगैरह ऊपर की मंजिल की खिड़कियों से सड़क पर डाला करती हैं। अनेक बार उनके छींटे हम लोगों को भी लगते हैं और सड़क पर चलने वाले व्यक्तियों को भी लगते होंगे।
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