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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग
राज गुरु बनने वालों के लिये एक शर्त रखी है, वह आपने भी सुनी होगी। फिर आप उसे पूरी करने में विलंब क्यों कर रहे हैं ?
"जल्दी क्या है, वह भी पूरी हो जायगी।"
राजा को फकीर की बात सुनकर कुछ आश्चर्य हुआ और उन्होने प्रश्न किया-"आप रहते कहां हैं ?"
"उधर मैदान में ही मेरी झोंपड़ी है जहां पंडित लोग ज्यादा से ज्याद जमीन घेरकर आश्रम बनाएंगे।
यह कहकर फकीर धीरे-धीरे वहाँ से चल दिया।
जिस दिन राजा की दी हुइ अवधि समाप्त हुई, वे अपने दल-बल सहित निरीक्षण करने निकले कि किस उम्मीदवार ने सबसे विस्तृत और सुन्दर आश्रम बनाया है। उन्होंने देखा कि लगभग सारी मैदान बड़े-बड़े आश्रमों से घिर गया है। और उन्हें बनाने वाले पंडित आश्रमों के द्वार पर राजा की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि शायद उनका आश्रम राजा को पसन्द आए और वे राज-गुरु बना दिये जाय ।
इधर राजा उन सभी आश्रमों को ध्यानपूर्वक देखते हुए घूम रहे थे कि उस दिन दरबार से सबसे पीछे जाने वाले फकीर पर अचानक ही उनकी दृष्टि पड़ गई। उन्होंने देखा कि फकीर राख के एक बड़े ढेर पर मस्ती से बैठा हुआ कुछ गुनगुना रहा है।
राजा बड़े चकित हुए और फकीर के सामने पहुंच कर बोले-"महाराज ! यह क्या ? आपने एक छोटा सा आश्रम भी नहीं बनाया इतने दिनों में ?"
फकीर हँस पड़ा और कहने लगा-"राजन ! मैंने तो अपनी बनी हुई झोंपड़ी को ही फूंक दिया है। उसी के ढेर पर तो बैठा हूँ।"
"झोपड़ी को फूंक दिया ? ऐसा क्यों ? राजा ने आश्चर्य से पूछा।
'इसलिये कि मेरी झोंपड़ी थोड़ी सी जगह में थी और आश्रम बनाता तो भी वह जगह सीमित ही रहती। अतः अब झोंपड़ी भी फूंक देने से सारा संसार मेरी जागीरी बन गया है। आप स्वयं देख लीजिए कि चारों दिशाओं में दूर-दूर तक क्या मैंने कोई सीमा बाँधी है ? इसलिये मेरा आश्रम तो जहाँ तक भी दृष्टि जाये वहाँ तक है।"
राजा फकीर की बात सुनकर स्तब्ध रह गए। उन्हें उस त्यागी और सम्पूर्ण संसार को अपना समझने वाले पर बड़ी श्रद्धा उत्पन्न हुई । उसी क्षण उन्होंने चारों
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