________________
'चिन्ता को चित्त से हटाओ
आगे कहा है
हाथ में कुंडी बगला में सोटा, चारों दिसि जागोरी में । आखिर यह तन खाक मिलेगा, कहा फिरत मगरूरी में । कहे कबीर सुनो भई साधो, साहिब मिले सबूरी में ॥
कबीर जी बड़ी मजेदार बात और बगल में सोटा (लड़की) होनी जागीरी में आ जाता है । हम अपने हैं । इस विषय को स्पष्ट करने वाला
२४७
कह रहैं कि - 'साहब, हमारे तो हाथ में कुडा चाहिये । फिर तो सारा संसार ही हमारी आपको इस जहान का मालिक समझने लगते एक उदाहरण है
चारों दिसि जागीरी में
किसी राजा गुरु का देहावसान हो गया अतः राजा ने दूसरे गुरु की खोज करनी प्रारंभ कर दी । उस खोज के प्रयत्न में उन्होंने अपने सम्पूर्ण राज्य में मुनादी करवादी कि "जो भी विद्वान और त्यागी पंडित अपने आपको राज- गुरु पद के योग्य मानते हैं, वे अमुक दिन राज्य दरबार में पधारें ।”
मुनादी के परिणाम स्वरूप निश्चित दिन पर अनेक ब्राह्मण पंडित बड़े ठाट-बाट से राज्य दरबार में आए । राजा ने सभी का आदर-सत्कार किया और उसके पश्चात् कहा – “मुझे आप लोगों में से एक को राज-गुरु के पद पर प्रतिष्ठित करना है. किन्तु उसके लिये केवल एक परीक्षा है, वह विस्तृत और मीलों लम्बा चौड़ा मैदान है, वहाँ पर आप अधिक जमीन घेरकर सुन्दर आश्रम बना लेगा वही मेरा आश्रम बनाने के लिये कुछ महीनों की अवधि भी निर्धारित
यह कि शहर के बाहर बड़ा लोगों में से जो भी विद्वान
राजा की बात सुनते ही सभी पंडित वहाँ से तुरन्त रवाना हो गये ताकि वे शीघ्रातिशीघ्र दिन-रात परिश्रम करके अधिक से अधिक जमीन घर सकें और आश्रम बना सकें । पर उन सबके चले जाने के बाद राजा ने देखा कि एक फक्कड़ साधु जो केवल लंगोटी ही लगाए हुए है, वहीं खड़ा है ।
Jain Education International
राजगुरु होगा ।" राजा ने कर दी ।
राजा को कौतूहल हुआ उसके न जाने का और उसने साधु से पूछा - " बाबाजी, आप किसलिये यहाँ आए हैं ?
"वाह ! आपने ही तो राज-गुरु-पद के उम्मीदवारों को यहाँ बुलाया था । " फकीर ने सहज भाव से उत्तर दे दिया ।
राजा मुस्कराये पर पुनः बोले – “महाराज ! आपकी बात सत्य है पर मैंनें
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org