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________________ शरीर को कितने वस्त्र चाहिये ? २३६ - वे यह भूल जाती हैं कि नारियों के सच्चे भूषण और वस्त्र उनकी लज्जा मधुर स्वभाव एवं पातिव्रत्य ही होते हैं। महात्मा कबीर ने अपने एक दोहे में लिखा है पतिवरता फाटा लता, गले कांच को पोत । सब सखियन में यों दिपे, ज्यों रवि-ससि की जोत ॥ अर्थात्-पतिव्रता स्त्री भले ही फटे हुए वस्त्र पहने और भूषण के नाम पर गले में काँच की पोत ही डाले, किन्तु फिर भी उसका गौरव और तेज इतना दीप्त रहता है कि अपनी सखियों और अन्य नारियों के बीच में वह चन्द्र एवं सूर्य की ज्योति के समान प्रकाशित होती है । _मेरा आशय कहने का यही है कि आज के युग में आप वस्त्रों को ही सबसे अधिक महत्त्व देते हैं। यहाँ धर्मोपदेश सुनने के लिए आते समय भी आप सामायिक के उपकरण, आसन- पूजनी, माला, मुखवस्त्रिका तथा कोई तात्विक बात लिखने के लिये डायरी आदि लाना भले ही भूल जाँय, किन्तु हमें पहनकर क्या जाना है, यह कभी नहीं भूलते । जबकि वस्त्रों का महत्त्व जीवन में कुछ भी नहीं है और चाहे वह बिलकुल घटिया पहना जाय या बढ़िया उससे आत्मा का कुछ भी बनता बिगड़ता नहीं । हमारी बहनों के पास कपड़ों से पेटियाँ भरी होती हैं और चाहे वे पड़े-पड़े सड़ जाँय, पर फिर भी जिसका कोई वस्त्र नई डिजाइन का देखा, वैसा ही और लेने के लिये सदा तैयार रहती हैं। आप लोगों का भी यही हाल है। आप अपने एक-एक सूट में सैकड़ों रुपये खर्चा कर देते हैं, जबकि देश के सैकड़ों ही क्या लाखों दरिद्रो के पास लज्जा ढकने के लायक भी वस्त्र नहीं होता। बंधुओ, आपको ध्यान रखना चाहिये कि कीमती और अगणित वस्त्रों को पहनने और संग्रह करने से आपका महत्त्व नहीं बढ़ता । आपका महत्त्व तभी बढ़ेगा जब कि आप स्वयं कम से कम और सादे वस्त्र पहनकर अपने विचारों को बहुमूल्य बनाएंगे तथा उत्तम गुणों का संग्रह करेंगे। संसार के सभी महापुरुष धन का संग्रह करके और कीमती कपड़े पहनकर महान् नहीं बने हैं वरन वे इनका त्याग करके और केवल आवश्यकतानुसार इनका उपयोग करके ही अपने को महान् बना सके हैं। घी का दिया किसलिये ? अभी मैंने एक स्थान पर पढ़ा था कि महात्मा गाँधी ने एक दिन शाम की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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