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शत्रु से भी मित्रता रखो !
२३७ इसीलिये भगवान ने साधु को आदेश दिया है कि वह शरीर का मोह त्यागते हुए उस पर आने वाले परिषहों के कारण मन में रोष न आने दे और पूर्ण समभाव पूर्वक कष्ट सहन करे । यद्यपि मक्खी, मच्छर एवं डांस आदि शरीर को कष्ट पहुँचाते हैं और उसमें रहे हुए मांस एवं रुधिर को ग्रहण करने के प्रयत्न में लगे रहते हैं, किन्तु जो साधु शरीर को अपनी आत्मा से पृथक् मानता है तथा अपने कर्मों की निर्जरा का इच्छुक रहता है, वह इन परिषहों से कभी नहीं घबराता तथा अपनी आत्म-शक्ति के द्वारा पूर्ण शांति एवं समाधि भाव रखता हुआ उनका मुकाबला करता है। ऐसा प्राणी ही शनैः शनैः कर्मों से सर्वथा मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करता है।
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