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शत्रु से भी मित्रता रखो !
तू काटे जा किन्तु साधुता कभी नहीं मैं छोड़ गा; तेरी रक्षा से ऐ प्यारे कभी नहीं मुँह मोड़ गा । तेरे हित के लिए प्राण भी मैं अपने दे डालूँगा, पाले जा तू मैं भी अपने प्यारे प्रण को पालूँगा ।
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क्या कह रहे हैं संत ? वे बिच्छू से कहते हैं - " तू बार-बार पानी में गिर जाता है पर मैं तुझे बार-बार निकालने का प्रयत्न कर रहा हूँ । वह प्रयत्न तू ही सफल नहीं होने दे रहा है क्यों कि तू मुझे बार-बार डंक मार देता है । परिणामस्वरूप तेरा जहर मेरे शरीर में चढ़ रहा है पर मैं क्या कहूँ ? यही कहूँगा कि तू अपने हितकारी को भी कष्ट पहुंचाने वाले अपने स्वभाव को नहीं छोड़ता तो मैं अपने साधु के योग्य जो कर्तव्य है उसे कैसे छोड़ ? तेरा स्वभाव दुःख पहुँचाने का है और मेरा दुःख मिटाने का । अतः तू भले ही अपने स्वभाव को मत छोड़, मैं तो तुझे बचाऊँगा ही । तू मुझे चाहे जितनी बार काट, किन्तु मैं तेरी रक्षा से कभी नहीं मोड़ तेरी रक्षा करने में चाहे मेरे प्राण भी निकल जाँय तो भी पीछे नहीं हटू गा । अधिक क्या कहूँ ? तू अपनी आदत के अनुसार कार्य किये जा । इधर मैं भी अपने व्रत का पालन करता रहूँगा, इसे तोड़ गा नहीं ।"
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इस छोटे से उदाहरण से व्यक्ति को यही शिक्षा मिलती है कि वह अपने को कष्ट पहुंचाने वाले और यहाँ तक कि प्राण लेने वाले प्राणी के प्रति भी पूर्ण क्षमा का एवं दया का भाव रखे । सच्चे संत तो विश्ववर्ती समस्त प्राणियों को अपना मित्र एवं हितैषी समझते हैं । बिच्छु को डंक मारने पर भी बार-बार पानी में से निकालने वाले संत उसे अपना दुश्मन नहीं समझ रहे थे, वरन अपने कर्मों की निर्जरा कराने वाला मानकर अपना हितैषी ही मानते थे ।
जो व्यक्ति ऐसा नहीं मानता है वह चाहे श्रावक हो या साधु, अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकता । उसे अपने कष्ट पहुंचाने वाले के प्रति रोष उत्पन्न होता है और जब हृदय में रोष या क्रोध का आविर्भाव हो जाता है तो वह मनुष्य अपने अकल्याण करने वाले के दोष गिनने और ढूढ़ने लगता है ।
वैसे इस संसार में दोषदर्शी या छिद्रान्वेषी व्यक्तियों की कमी नहीं है । कदमकदम पर आपको ऐसे व्यक्ति मिल जाएँगे जो बिना वजह ही औरों की निंदा, बुराई एवं अहित करने के प्रयत्न में रहते हैं । और तो और, वे साधुओं के यहाँ भी उनकी सगति के इच्छुक बनकर या उनसे कुछ प्राप्त करने की आकांक्षा लेकर नहीं आते । अपितु वे साधुओं के व्यवहार, आचरण एवं क्रिया आदि में कमी ढूंढ़ने तथा उनकी
दिलाई देखने आते हैं ।
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