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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग
विचारा कि यह बिच्छू अगर जल में से नहीं निकाला गया तो निश्चय ही मर जाएगा। उसके प्राण कंठ तक आ चुके थे और वह बुरी तरह प्राणरक्षा के लिये छटपटा रहा था।
उसकी ऐसी दशा देखकर संत से नहीं रहा गया और वे नदी में घुसकर अपने हाथ में बिच्छू को उठाने लगे । यद्यपि बिच्छू मृत्यु के भय से घबरा रहा था किन्तु संत के हथेली में लेते ही अपने क र स्वभाव के कारण उसने साधु के हाथ में डंक मार दिया। हाथ में डंक लगते ही संत का हाथ तनिक हिल गया और बिच्छू पुनः नदी में जा गिरा । पर वह मर जाएगा यह सोचकर संत ने उसे फिर उठाना चाहा, पर वह बिच्छू ही तो ठहरा, उसने फिर डंक मार दिया। इस प्रकार संत उसे बारबार हाथ से निकालने का प्रयत्न करते और बिच्छ हर बार उन्हें डंक मारता । वह भी धीरे से नहीं किन्तु पानी में बहने के क्रोध में आकर बड़े जोर से डंक चुभाता था।
यह देखकर किनारे पर खड़े हुए एक दूसरे स्नानार्थी ने संत से कहा"महात्माजी आप यह क्या नादानी कर रहे हैं ? बिच्छू बार-बार आपको काटता है पर आप फिर भी उसे बार-बार उठाने का प्रयत्न कर रहे हैं ?"
साधु ने उस स्नानार्थी की बात सुनी पर उसकी परवाह न करते हुए वे अपने प्रयत्न में लगे रहे । साथ ही सकौतुक बिच्छू को सम्बोधित करते हुए बोलेनदी धार में बहता जाता, तू ईश्वर का था प्यारा,
बिलख रहा था प्राण कंठ थे कल-बल से भी था हारा । स्नान छोड़कर मैंने तुझको पकड़ किनारे पर डाला,
पर मुझको ही तूने मारा डंक, नहीं हित को पाला । फिर से लहरों में तू बहने लगा दया मुझको आई,
फिर पकड़ा तुझको पर तूने डंक दिया मुझको भाई । संत हँसते हुए कहते हैं . "अरे भाई ! तू नदी में बह रहा था और तेरे प्राण जाने की नौबत आ गई थी। यह देखकर मैंने तुझे बचाना चाहा पर किनारा आतेआते तूने मुझे ही डंक मार दिया और फिर पानी में जा गिरा । मैंने फिर तुझे निकाल कर बाहर लाना चाहा पर तूने पुन: मेरे हाथ में काट खाया ।"
आगे संत कह रहे हैंजहर चढ़ा तेरा मेरे तन फिर बहता तुझको पाया,
बार-बार तू बहा नदी में पकड़-पकड़ तुझको लाया। खल स्वभाव को तजा न तूने अपने हितकारी के साथ,
फिर मैं कैसे तज सकता हूँ सत्य, साधुता अपने हाथ ।
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