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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग
तिलक के समान से तात्पर्य माथे पर सुशोभित होने वाले से है। और माथे पर वही शोभा पाता है जो सर्वोत्तम या सदगुणों से युक्त होता है। श्लोक में बताई तीनों बातें सुनने में साधारण लगती हैं किन्तु उन्हें अमल में लाना बड़ा महत्वपूर्ण होता है तथा जो इन्हें अमल में लाता है वह महापुरुष अथवा असाधारण पुरुष कहलाता है।
वास्तव में ही राग को छोड़ना कितना कठिन है ? आप लोग अपने धन, मकान, दुकान आदि ऐश्वर्य को क्या सहज ही त्याग सकते हैं ? नहीं, उलटे अपनी चतुराई से इन्हें चौगुना करने की फिराक में रहते हैं। जिसमें भी महाजनों की अक्लमन्दी का तो पूछना ही क्या है। अन्य समस्त जातियों से आप लोग बहुत ज्यादा होशियार होते हैं । आपकी होशियारी का एक उदाहरण आपके सामने ही रखता हूँ। महाजन की करामात
एक महाजन बड़ा होशियार और चालाक था। उसका लाखों का कारोबार था और दिन-रात बढ़ता ही जाता था।
कहा जाता है कि एक बार लक्ष्मी और दरिद्रता में झगड़ा हो गया। दोनों कहती थीं मैं बलवान् हूँ । लक्ष्मी का तर्क था कि वह लोगों को संसार के समस्त सुख प्रदान करती है और उसकी मान-प्रतिष्ठा आकाश तक पहुंचा देती है ।
इसके विपरीत दरिद्रता का कहना यह था कि वह प्रथम तो विद्वान पुरुषों के पास रहती है, दूसरे लोगों को पुरुषार्थी बनती है। धनाभाव होने पर ही व्यक्ति श्रम करता है तथा अपनी शक्तियों को काम में लाता है।
इस प्रकार दोनों देवियाँ काफी समय तक एक दूसरे को बुरा कहती रहीं और जब झगड़ा मिट नहीं सका वरन बढ़ता गया तो किसी और से इसका निपटारा कराने के लिये चल दी।
संयोगवश वे दोनों उस बुद्धिमान महाजन के पास ही पहुंच गई । अपनेअपने पक्ष में तर्क देते हुए उन्होंने पूछा- "तुम बताओ कि हम दोनों में से बड़ी और अच्छी कौन है ?"
महाजन बड़ी दुविधा में पड़ गया और सोचने लगा-"अगर मैं लक्ष्मी को अच्छी कहूँगा तो दरिद्रता घर में घुस जाएगी और दरिद्रता को अच्छी कहूँगा तो लक्ष्मी नाराज होकर चली जाएगी।"
इस प्रकार सेठ कुछ देर तक विचार करता रहा और फिर अपनी चतुराई
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