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आनन्द प्रवचन | पांचवां.भाग ___अर्थ सरल ही है कि- "यह नर देह पुनः पुनः मिलनी कठिन है और अगर अभी वृथा चली गई तो फिर ईश्वरभक्ति किस जन्म में हो सकेगी ? इसलिए हे जीव ! यह अवसर मत खो तथा फिर चौरासी का चक्कर न चल जाये, इसलिये पहले ही उसे रोकने का प्रबन्ध कर ले। जो बुद्धिमान् व्यक्ति होता है, वह पानी का प्रवाह आने से पहले ही बाँध बना लेता है, उसी प्रकार तू भी अगले लोक में कष्टों को भोगने का समय आए इससे पहले ही कर्मों की निर्जरा करके आत्मा को हलकी बना ले । और तब निर्भय होकर यहाँ से प्रयाण कर ।"
__ बंधुओ, यह चेतावनी प्रत्येक मानव के लिये है। क्योंकि यह शरीर तो एक दिन सभी का नष्ट होगा अतः इसको छोड़ने से पहले ही आगे के लिए शुभ-कर्मों का संचय कर लेना चाहिए। पर यह तभी हो सकेगा, जबकि इसी को जीवन का उद्देश्य न समझा जाय तथा इसे ही अधिकाधिक सुख पहुंचाने का प्रयत्न न किया जाय । बुद्धिमानी इसी में है कि यह हमें त्यागे, इससे पहले ही हम इसे त्याग दें। इसे त्याग देने का अर्थ आप यह न समझ लें कि आत्म-हत्या कर ली जाय । नहीं, अर्थ यह है कि इसके प्रति रहे हुए गहरे ममत्व को तथा आसक्ति को त्याग दें।
धर्म पर दृढ़ रहने वाले और अपनी साधना को अखंडित रखने वाले साधक तो प्राणों की परवाह भी नहीं करते हैं तो फिर शरीर को कष्ट पहुंचाने वाले परिषह क्या चीज हैं ? साधक यही विचार करे तथा जैसा कि अभी बताया गया है -डांस, मच्छर आदि के उपद्रव और उनके दंश से तनिक भी घबराये बिना अपनी संयम साधना निर्बाध गति से चलाता रहे।
___ संस्कृत साहित्य में एक मनोरंजक श्लोक आता है, जिसमें मच्छर का स्वभाव . बताते हुए दुष्ट व्यक्तियों की उससे तुलना की गई है । श्लोक इस प्रकार है
"प्राक् पादयोः पतित खादति पृष्ठमांसम्,
कर्णे कलम् किमपि रौति शनैर्विचित्रम् । छिद्र निरीक्ष्य सहसा प्रविशत्यशंकः,
सर्वम् खलस्य चरितम् मशकः करोति ॥ - कहते हैं कि पहले मच्छर पैर पर गिरता है, उसके पश्चात् पीठ पर का मांस खाता है। फिर अगर वह देखता है कि इन्होंने सहन कर लिया है तो कान के पास आकर मधुर गुजार करता है तथा अवसर पाते ही छिद्र देखकर कान, नाक अथवा मुह में प्रवेश कर जाता है ।
___ इसी प्रकार दुर्जन भी अपना कार्य करते हैं । वे पहले अपने व्यवहार को बड़ा नम्र बनाते हैं जैसे चरण ही चूमते हों। उसके बाद उस व्यक्ति की पीठ के पीछे निंदा
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