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क्षण-विध्वंसिनी काया !
अया
र्मिप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो ! THAN . कल मैंने बाईस परिषहों में, से चौथे 'उष्ण-परिषह' के विषय में बताया था। गाज पाँचवें पर आना है। पांचवें परिषह का नाम है, 'देशमशक-परिषह' । इस विषय में 'श्री उत्तराध्ययन सूत्र' में कहा गया है
पुट्ठो य दंसमसएहि, समरेव महामुणी । नागों संगामसीसे वा, सूरो अभिहणे परं ॥
-अध्ययन २, गाथा १० अर्थात्--देशमशक आदि जंतुओं के स्पर्श होने पर भी महामुनि समभाव से रहे और जिस प्रकार हाथी संग्राम में आगे होकर शत्रु ओं को जीतता है उसी प्रकार साधु भी परिषहों का मुकाबला करके उन पर विजय प्राप्त करे ।
यह तो सभी जानते हैं कि ग्रीष्मऋतु के पश्चात् वर्षाऋतु आती है और उसका आगमन होने पर डांस, मच्छर आदि अनेकानेक जीवों की उत्पत्ति हो जाती है। ये जीव भी मनुष्यों को बहुत परेशान करते हैं। कहीं-कहीं तो मच्छर इतनी अधिक तादाद में होते हैं कि घरों में उठना, बैठना, सोना सभी बड़ा कठिन हो जाता है । मध्यप्रदेश के दुर्ग जिले में इतने बड़े-बड़े और असंख्य मच्छर होते हैं कि मनुष्य दिन को भी चैन नहीं ले पाता और रात्रि को तो मच्छरदानी लगाये बिना सो ही नहीं सकता।
किन्तु ऐसी स्थिति में भी साधु अनिद्रा और दंश की तकलीफ को सहन करता हुआ पूर्ण शांति और स्थिरता से अपनी साधना को आगे बढ़ाता चला जाता है।
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