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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग
उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है
'कोहविजएणं खंति जणयई।' क्रोध को जीत लेने से क्षमाभाव जागृत होता है।
जो भव्य प्राणी क्रोध को जीतकर क्षमाभाव अपना लेता है वह अपना भला तो करता ही है, साथ ही अपने सम्पर्क में आने वाले को भी सन्मार्ग पर चला सकता है। एक उदाहरण हैकमलम या छुरी? - एक वकील साहब घर से रवाना होकर कचहरी जा रहे थे। उनकी बगल में कागजातों का बस्ता दबा हुआ था।
संयोगवश उनके बस्ते में से उनका पैन निकलकर बाहर गिर गया। एक राहगीर ने उसे उठाया और कुछ क्षण विचार कर वकील साहब के साथ-साथ चलते हुए बोला-"वकील साहब ! आपके बस्ते में से यह आपकी छुरी निकलकर गिर गई है।"
राहगीर की बात सुनते ही वकील साहब क्रोध से आगबबूला हो उठे और कर्कश स्वर से कह उठे
"अबे, अन्धा है क्या ? यह पैन है या छुरी? पैन को छुरी बता रहा है ?"
वकील की कटूक्ति सुनकर भी वह व्यक्ति नाराज नहीं हुआ, उलटे नम्रतापूर्वक बोला- "साहब, है तो यह पैन ही, पर इसी के द्वारा न जाने कितने व्यक्तियों के गले कटे होंगे। इसलिए क्या छुरी नहीं कहा जा सकता ?"
उस व्यक्ति की बात सुनकर वकील साहब बड़े शर्मिन्दा हुए और उन्होंने मन ही मन निर्णय किया कि कभी झूठा मुकदमा लेकर निरपराध व्यक्तियों का गला नहीं काटूगा।
यह उदाहरण बताता है कि पैन उठाने वाले राहगीर ने पैन को छरी बताने पर वकील के द्वारा बुरा-भला कहा जाने और गालियां खाने की भी संभावना की थी। किन्तु इन सबको समभाव या क्षमाभाव पूर्वक सहन करने के लिये वह पहले ही तैयार हो गया था। यही कारण था कि वकील को अपने जीवन का निकृष्ट पहलू समझा सकने में समर्थ बना और उन्हें नैतिक जीवन बिताने के लिये बड़े सुन्दर ढंग से सुझाव दिया।
तो बंधुओ ! संत तुकाराम जी का यही कथन है कि काम और क्रोधादि विकारों को अपने विवेक और ज्ञानपूर्वक जीत लेने पर ही व्यक्ति अपनी आत्मा के
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