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उष्णता कोशीत कमाने जीतो!
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आचार्य चाणक्य ने एक स्थान पस्कहा है।
नास्ति कामसम्माधिस्त मोहसमो. रिपुः ।
नास्ति क्रोधसमोवह्निनास्ति ।। जातात्परं सुखम् ॥ 2 यानीलाम के समातु कोई व्याधि नहीं है। मोहा के समान कोई शत्र, नहीं है। क्रोध के समान कोई अग्नि नहीं है और ज्ञान से बढ़कर कोई सुख नहीं है।
श्लोक में क्रोध को विनाशकारी आग बताया गया है। इस भाग में आत्मा के समस्त सद्गुण जलकर भस्म हो जाते हैं। क्रोध के आवेश में मनुष्य अपने आपको भूल जाना है और वह नहीं जान पाना कि उसको मुख से कैसे शब्द निकल रहे हैं । क्रोध रूपी यह आग कटुवचनों के द्वारा औरों को तो कायल करती है, स्वयं क्रोधी व्यक्ति के हृदय को भी दग्ध किये बिना नहीं रहती।
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर वैज्ञानिक कहने हैं कि क्रोध से ममुष्यका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है और उसके परिणामस्वरूप उसके शरीर में रूक्षता आ जाती है । क्रोध करते समय मुंह सूखता है तथा कण्ठ में रहने वाली ग्रन्थियाँ जो कि लार पैदा करती हैं और प्राणप्रद रस बनाती हैं, वे अपना काम बन्द कर देती हैं । फल यह होता है कि लार के द्वारा भोजन में मिल जाने वाले. पाचक रस का. अभाव हो जाता है और उसके अभाव से भोजन बराबर नहीं पचता तथा पेट खराब हो जाता है। कभी-कभी तो चर्म-रोग भी पेट की खराबी या कब्ज के कारण पैदा हो जाते हैं। इस प्रकार कोधी व्यक्ति अनेक तरह के रोगों को स्वयं आमंत्रण देता है। सारांश यही है कि क्रोधी व्यक्ति अपनी जलाई हुई आग से स्वयं भी धीरे-धीरे' भस्म होने लगता है । उसका शरीर कृश होता हुआ मृत्यु के सन्निकट जल्दी पहुंचता है।
इस प्रकार क्रोध शारीरिक हष्टि से तो हानिकर है ही, वह आध्यात्मिक दृष्टि से भी हानिकार हैं। हमारे शास्त्र क्रोध को समस्त पापों का मूल मानते हैं । इसलिए प्रत्येक आत्मार्थी को पापों से बचने के लिए क्रोध का त्याग करना आवश्यक हैवालो व्यक्ति क्रोध नहीं करना वह देवता की कोटि में आ जाता है। उसे अगर हम अजातशत्रु: कहें तब भी कोई बड़ी बात नहीं है। कारण यही है कि क्रोध न कर, वाले का कोई भी छात्र नहीं होता । उसके सारे शत्र' मित्र बन जाते हैं।
E अक्रोधी व्यक्ति को सबसे बड़ा लाभ तो यह होता है कि उसकी आत्मा सरल, स्नेहपूर्ण एवं पर-उपकारी बन जाती है। एक क्रोधी व्यक्ति जहाँ दूसरे के हृदय को तोड़ डालता है, वहाँ क्रोध न करने वाला व्यक्ति औरों के संकट, विपत्ति या अन्य दुखों से टूटे हुए दिलों को सान्त्वना का मरहम रखकर जोड़ देता है। उसके ऐसे कार्य ही आत्म-शुद्धि में सहायक बनते हैं।
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