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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग . तो बन्धुओ, आज की बातों का सारांश आप समझ गए होंगे कि मुक्ति के अभिलाषी को केवल चाहने मात्र से ही मुक्ति नहीं मिल जाती । इसके लिये उसे बड़े पापड़ बेलने पड़ते हैं। उपसर्ग और परिषह सहने पड़ते हैं तथा बड़ी दृढ़ता पूर्वक संवर के मार्ग पर चलना होता है । परिषहों को सहना केवल संतों के लिए ही नहीं है, अपितु श्रावकों के लिए भी यथाशक्य आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति जब धर्म के महत्त्व को समझ लेगा तथा अभी बताई हुई पांचों भावनाओं को मूर्त रूप में लाने का प्रयत्न सभी परिषहों को सहन करते हुए भी करेगा तभी वह इस लोक और परलोक में सुखी बनेगा और वही दिन उसका धन्य माना जाएगा।
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